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तत्त्वाचिन्तामणिः
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बे प्रसिद्ध हो रहे पांचों भी प्रकारके ये प्रकरण प्राप्त ज्योतिषी देव तो अवधि, मनःपर्यय, और केवल इन प्रत्यक्षद्वानोंको धारनेवाले अतीन्द्रियदर्शी प्रत्यक्षज्ञानियों करके देखे जा चुके हैं। यानी मुख्यप्रत्यक्ष ज्ञानोंकरके वे देव विशदरूपेण साक्षात्कार किये जा चुके हैं । क्योंकि उन प्रत्यक्षज्ञानियोंके उपदेशका अविसम्वादापना (निर्बाधपना ) अन्यथा यानी किसी प्रत्यक्षज्ञानी द्वारा विषयोंका प्रत्यक्ष किये जा चुके विना नहीं बन सकता है । अर्थात्-वर्तमानमें सूर्य, चन्द्र, प्रहणव्यवस्था, विमानोंकी गति, प्रहोंका बारह राशियोंपर संक्रमण आदिको ज्योतिष विषयके पण्डित ठीक ठाक बता देते हैं । इस दिशासे इतना टेडा, नौकीला, अर्धग्रास, या खग्रास, इतनी देरतक, आदि बखाना गया सूर्यग्रहण पडेगा, या चन्द्रग्रहण पडेगा, अमुक दिन शुक्र अस्त हो जायगा, फलाने दिन बृहस्पतिका उदय होगा, इत्यादि व्यवस्थाओंको यद्यपि ज्योतिषशास्त्र निर्णीत कर देता है, फिर भी उन प्रत्यक्षज्ञानीको धन्य है, जिसने अनादि, अनन्त, कालतक होनेवाली ज्योतिष्क विमानों की परिणतियों का प्रत्यक्ष अवलोकन कर तदनुसार अव्यभिचरित नियमोंको ज्योतिषशास्त्रोंमें गूंथ दिया है । प्रत्यक्षज्ञानीको सिद्ध करनेके लिए यह भी बडी अच्छी एक युक्ति है । अतः ज्योतिष्क विमान और उनके निवासी देवोंका प्रत्यक्षपूर्वक और तदुपदिष्ट आगम प्रमाणोंद्वारा निर्णय कर लिया जाता है । रूपी और रूपवान् पुद्गलके साथ सम्बद्ध हो रहे जीवका यथायोग्य प्रत्यक्ष करनेवाले अवविज्ञानियों और मनःपर्यय ज्ञानियोंको भी देवोंका प्रत्यक्ष हो जाता है । यदि मनुष्य या तिर्यंच जीवों के जीवित शरीरोंका प्रत्यक्ष होकर उन उन आत्माओंका भी उपचारसे प्रत्यक्ष हो जाना अभीष्ट है तब तो देवदेवियों को भी परस्परमें अथवा स्वयंको भी स्वकीय वैक्रियिकशरीरोंका इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष होना अभीष्ट कर लिया जाय, कोई क्षति नहीं पडेगी । देव चाहे तो अपने वैक्रियिक शरीरका मनुष्य, तिथंच या नारकियों को भी प्रत्यक्ष करा सकते हैं । विप्रकृष्ट पदार्थोकी सिद्धि करनेका उपाय इतना क्या थोडा है ! अलम् ।
सामान्यतोऽनुमेयाश्च छद्मस्थानां विशेषतः । परमागमसंगम्या इति नादृष्टकल्पना ॥ २॥
अर्वाग्दी छमस्थ जीवोंके अनुमान प्रमाण द्वारा वे ज्योतिष्क देव सामान्य रूपसे जानने योग्य हैं। और आयुः, शरीर, लेश्या, प्रभाव, आधारस्थान, आदि विशेष रूपोंसे तो ज्योतिषी देवोंको सर्वज्ञोक्त परम आगमप्रमाण द्वारा भले प्रकार समझ लेना चाहिये । इस कारण सूत्रकार द्वारा कहे गये ज्योतिष्क देवोंकी व्यवस्था यह अदृष्ट या अप्रमाणिक पदार्थकी कल्पना नहीं है । छग्रस्थ जीवोंके प्रत्यक्ष या अनुमान प्रमाण विचारे अल्प पदार्थोंमें ही प्रवर्तते हैं । इनसे अनन्तानन्त गुना प्रमेय श्रुत. ज्ञान या केवलज्ञान द्वारा निर्णय करने के लिये अवशिष्ट पडा रहता है। कूपमण्डूकबुद्धिसे पदायाँका निर्णय नहीं हो पाता है। समुद्रहंसकोसी उदार बुद्धियोंसे त्रिलोक, त्रिकाल्पती पस्तुभूत पदार्थ
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