________________
तत्वार्थ लोकवार्तिके
कोई जिज्ञासु पूंछता है कि महाराजजी, फिर बताओ कि इन व्यन्तर देवोंके नाना प्रकारक देशान्तरवर्त्ती अवकाशस्थान नामके आवास और नगर कहां कहां हैं ? जिससे कि व्यन्तर शब्दकी निरुक्ति सामर्थ्य से इन किन्नरादि देवोंके आधार की प्रतिपत्ति हो सके ? इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य समाधान करते हुये अग्रिमवार्तिकको कहते हैं ।
५४०
अष्टभेदा विनिर्दिष्टा व्यन्तराः किन्नरादयः । विविधान्यंत राण्येषामधोमध्यमलोकयोः ॥ १ ॥
श्री उमास्वामी महाराज करके किन्नर, आदिक आठ भेदवाले व्यन्तरदेव तो विशेषरूप से नाम मात्रतया उद्दिष्ट कर दिये हैं । इन व्यन्तरोंके अधोलोक और मध्यलोकमें अनेक प्रकार अन्तर यानी भवनपुर, आवास, और भवन, नामके असंख्यात निलय है । द्वीप या समुद्रमें होनेवाले मध्यभाग प्राप्त स्थानोंको भवनपुर कहते हैं । हृद, पर्वत, वृक्षों में बने हुये ऊर्ध्वगत स्थानों को आवास कहते हैं, चित्रा, पृथिवी में बने हुये अधः प्राप्त स्थानों को भवन कहते हैं ।
अधोलोके तावदौपरिष्टे खरपृथिवीभागे किंनरादीनामष्टभेदानां व्यंतराणां दक्षिणाधि - पतीनां किंपुरुषादीनां चोत्तराधिपतीनाम संख्येयनगर शतसहस्राणि श्रूयंते, मध्यलोके च दीपाद्रिसमुद्रदेश ग्राम नगरत्रिकचतुष्कच तुरगृहांग गरथ्याजलाश पोद्यानदेव कुलादीन्यावासशतसहस्राणामसंख्येयानि तेषामाख्यायंते । तद्विशेषसंख्या परिवारविभूतिविशेषो यथागमं प्रतिपत्तव्यः पूर्ववत् ।
अधोलोक में रत्नप्रभा के सोलह हजार योजन मोटे उपरिम प्रदेश सम्बन्धी खरपृथिवी भागमें किनर, सत्पुरुष आदिक आठ भेदत्राले दक्षिण दिशा के अधिपति हो रहे व्यन्तरों में निवासस्थान बने ये हैं तथा खरपृथिवीभागमें ही उत्तरदिशा के अधिपति किम्पुरुष, महापुरुष, आदि व्यन्तर इन्द्रों के संख्याते लाख नगर विद्यमान है, ये आतंक शास्त्रोंद्वारा जाने जा रहे हैं । अर्थात् - - इस जम्बूद्वीपसे तिरछे असंख्याते द्वीप समुद्रों का उल्लंघन कर परली ओर के द्वीपसमुदोंमें ऊपरले खरपृथिवी भागमें उत्तरदिशा की ओर किंनर, सत्पुरुष आदि सात दक्षिण इन्द्रोंके असंख्याते लाख नगर आदि अनादिकालसे विद्यमान हैं और इसी प्रकार उत्तरदिशानें किम्पुरुष आदि सात व्यन्तरेन्द्रों के उतने ही असंख्याते नगर रचे हुये हैं। हां, राक्षसजातीय व्यन्तरोंके आवास तो रत्नप्रभा के चौरासी हजार योजन मोटे पंकबहुल भागमें असंख्याते लाख नगर बने हुये हैं और उत्तरदिशामें रत्नप्रभाके पंकबहुल भागमें राक्षसेन्द्र दक्षिणदिशाधिपति के असंख्याते लाख नगर शास्त्रद्वारा वर्णित हो रहे हैं । खरपृथिवी भाग में ऊपर नीचे एक एक हजार योजन छोडकर मध्यम चौदह हजार योजन मोदे और असंख्याते योजन लम्बे चोडे स्थानोंमें सात प्रकार के व्यन्तर और नौ प्रकार