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तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिके
गुणस्थानवर्ती नव अनुर्दिश, पांच अनुत्तर विमानवासी अहमिन्द्रोंके वेदकर्मका उदय है । द्रव्यवेद अनुसार देवोंके पुरुषोचित उपांग भी हैं। किन्तु आत्मीय पुरुषार्थजन्य विलक्षण परिणतियोंके नहीं करनेसे द्रव्यवेद और भाववेद व्यर्थ पड जाते हैं । छठे, सातवें, आठवें, गुणस्थानोंमें भी तो द्रव्यवेद
और भाववेदका सद्भाव है। फिर भी देवोंसे अनन्तगुणा निष्काम सुख साधुओंके माना गया है। ब्रह्मचर्य महाव्रतकी बडी महिमा है । कामको अनन्तकालतफके लिये जीतनेवाले क्षीणकषाय या केवलज्ञानियोंके परम अतीन्द्रिय सुख अनन्तानन्त विद्यमान है । यद्यपि स्त्री, पुरुषोंके मिथुन सम्बन्धी पुरुषार्थजन्य प्रकृति तो वृक्ष, घास, कीट, नपुंसक, नारकी आदिमें भी नहीं है, फिर भी इनके कामजन्य तीव्र दुःखवेदना हैं, जोकि अहमिन्द्रोंके सर्वथा नहीं है। इस सूत्रका अर्थ इस प्रकार कह दिया गया होजाता है कि उन तीन निकाय सम्बन्धी और स्वर्गवासी देवोंसे परे होरहे सम्पूर्ण कपातीत देव तो मैथुनसेवाके घनपंक ( दलदल ) में निमग्नता ( फंसे रहना ) स्वरूप प्रवीचारसे रीते हैं। अर्थात्-अनेक मनुष्य धर्मात्मा नहीं होते हुये भी जन्मते ही स्वभावतः कामवासनाओंसे दूर रहते हैं । उस दशामें उनको बडा गम्भीर सुख मिलता है । प्रथम गुणस्थानी आधुनिक वीर पुरुषों में भी कदाचित् प्रवीचाररहित भाव पाये जाते हैं । कोई आश्चर्य नहीं है।
कुतः पुनरुक्तेभ्यः परेप्रवीचारा इत्याह ।
अब श्री विद्यानन्द स्वामीके प्रति किसीका प्रश्न है कि महाराज, बताओ, कहे जाचुके देवोंसे परले देव फिर प्रवीचारसे रहित भला किस युक्तिसे सिद्ध हो जाते हैं ? आगम उक्त विषयोंके ऊपर युक्तियोंके प्रवर्त जानेसे ही आगमके ऊपर अनुग्रह हो सकता है, अन्यथा नहीं । इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य अग्रिमवार्तिकोंको समाधानवचनस्वरूप कह रहे हैं। उनको सुनो, समझे।
तेभ्यस्तु परे कामवेदनायाः परिक्षयात् । सुखप्रकर्षसंप्रादेः प्रवीचारेण वर्जिताः ॥१॥ संभाव्यते च ते सर्वे तारतम्यस्य दर्शनात् । नराणामिह केषांचित कामापायस्य तादृशः ॥२॥
उन उक्त देवोंसे परली ओरके वे विवादापन्न सम्पूर्ण कल्पातीत देव तो ( पक्ष ) मैथुनोपसेवनसे पर्जित होरहे सम्भव रहे हैं ( साध्य ) कामवेदनापीडाका परिक्षय होजानेसे ( हेतु ) काम सुखको अत्यन्त तुच्छ या मैथुनकर्मको अतीव हानिकारक समझ रहे और व्यायाम, दुग्धपान, निश्चिन्तता, घृतमेवा भोजन, आदिके भोगी मल्लके समान ( अन्वयदृष्टान्त )। इस अनुमानसे अहमिन्द्रोंमें प्रवीचाररहितपना साध दिया जाता है । तथा सुखके प्रकर्षकी भले प्रकार प्राप्ति होजानेसे ( हेतु ) अहमिंदोंके