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तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिके
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यदि वैशेषिक यों कहें कि हम केवल सामान्य या विशेष कर्त्ताको साध्यकुक्षि नहीं बनाते हैं । किन्तु उस कर्त्तापन सामान्य और विशेष दोनोंसे अधिष्ठित होने को साध्य करते हैं । अतः हमारे ऊपर कोई दूषण नहीं आता है । जैन पण्डित जैसे आपत्ति पडनेपर सामान्य विशेषात्मक दुर्ग ( किला या गढ ) का आश्रय ले लेते हैं उसी प्रकार हमने भी सामान्य, विशेष, कर्त्ताको साधने का ढंग निकाला है । आचार्य कहते हैं कि वह सामान्य विशेष रूप कर्त्ता भी सम्पूर्ण व्यक्तियोंमें व्यापक हो रहा ही कोई न कोई प्रसिद्ध हो सकता है । धूम हेतुसे जो अग्निसामान्य साधा जाता है वह अग्नि 1 सामान्य सम्पूर्ण देशविशेष और कालविशेषों में परिनिष्ठ हो रहीं अग्निव्यक्तियों में प्रविष्ट हो रहा है । जो सामान्य अपने विशेषोंमें प्राप्त हो रहा सिद्ध नहीं है वह अग्निसामान्य तो धूमकेतुसे नहीं साधा जाता है उसी प्रकार यहां भी कर्तृसामान्यकी यावत् कर्तृविशेषोंमें प्रतिष्ठित हो रहे की ही सिद्धि हो सकती है किन्तु जब अशरीर, व्यापक, नित्य, ईश्वर कोई कर्त्ताविशेष अभी तक सिद्ध ही नहीं हुआ है तो सशरीर, अल्पज्ञ, संसारी, अनेक कर्त्ताविशेषोंमें ही वह कर्तृसामान्य ठहर रहा साधा जा सकता
। अतः तुम्हारे अभीष्ट हो रहे कर्त्ता, ईश्वरकी सिद्धि नहीं हुई । सिद्ध हो रहे सामान्य विशेष आत्मक संसारी जीवस्वरूप कर्त्ताओंसे अधिष्ठितपनकी सिद्धि हो जानेसे तुम्हारे ऊपर सिद्धसाधन दोष तदवस्थ रहा।
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न करणादिधर्मिणः करणादित्वेन हेतुना कर्तृसामान्याधिष्ठितवृत्तित्वं साध्यते, नापि कर्तृविशेषाधिष्ठितवृत्तित्वं येनोक्तदूषणं स्यात् । किं तर्हि ? कर्तृसामान्यविशेषाधिष्ठितत्वं साध्यते, रूपोपलब्ध्यादिक्रियाणां क्रियात्वेन करणसामान्यविशेषाधिष्ठितत्ववत् । न हि तासां करणसामान्याधिष्ठितत्वं साध्यं, सिद्धसाधनापत्तेः । नाप्यमूर्तत्वादिधर्माधारकरणविशेषाधिष्ठितत्वं, विच्छिदिक्रियाद्युदाहरणस्य साध्यविकलत्वप्रसंगात् । तस्य मूर्तत्वादिधर्माधारदात्रादिकरणाधिष्ठितस्य दर्शनात् ।
वैशेषिक मान रहे हैं कि करण अधिकरण, कारक आदि धर्मियोंकी सामान्य रूपसे कर्त्ताद्वारा अधिष्ठित होकर वृत्ति होने को हम करण आदिकपन हेतु करके नहीं साध रहे हैं और उनसठवीं वार्तिक द्वारा करण आदि पक्षमें विशेषरूप करके कर्त्ताद्वारा अधिष्ठित होरही वृत्तताको भी हम नहीं साधते हैं जिससे कि आप जैनों द्वारा साठवीं वार्तिकमें कहे जाचुके दूषण हमारे ऊपर होजाय तो हम वैशेषिक क्या साधते हैं ? इसका उत्तर यह है कि सामान्य और विशेषोंसे आक्रान्त होरहे कर्त्तासे अधिष्ठितपना कारण आदिमें साधा जा रहा है जैसे कि छिदिक्रियाका दृष्टान्त देकर रूपकी उपलब्धि या रसकी ज्ञप्ति आदि क्रियाओं का क्रियापन हेतु करके सामान्य विशेषाकान्त करणसे अधिष्ठित पना साधा जाता है, देखिये उन क्रियाओं का सामान्य करणसे अधिष्ठितपना भी हम वैशेषिक नहीं साध रहे हैं । य रूपोपलब्धि आदि क्रियाओं का सामान्य करणसे अधिष्ठितपना साधनेपर हमारे ऊपर