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तत्त्वार्य लोकवार्तिके
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अपने या बच्चों के उपयोगी घरका निर्माण करना, शीत, उष्ण, मेघत्राधाओंसे या घातक मनुष्य, पशु, पक्षियोंके उपद्रवसे बचाकर उचित स्थलमें गृह बनाना, खाद्यपदार्थों का संग्रह कर रखना, आदि अनेक कार्य सम्पन्न हो जाते हैं। हितकी प्राप्ति और अहितका परिहार करना ज्ञानका कार्य है । यों प्रन्थकारने तिर्यंचोंकी एक एक प्रकार उत्कृष्ट और जवन्य स्थिति तथा असंख्य प्रकारोंकी मध्यम स्थितियोंको साध दिया है।
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किमर्थमिहोक्ते तिरां परावरे स्थिती प्रकरणाभावेपीत्यादर्शयति ।
इस तृतीय अध्याय के अन्तमें आर्य या म्लेच्छ मनुष्यों का प्रकरण आ जानेसे पूर्व सूत्रद्वारा मनुष्यों की जघन्य उत्कृष्ट आयुका निरूपण कर देना उचित है । किन्तु तिर्थचों का प्रकरण नहीं होते हुये भी श्री उमास्वामी महाराजने यहां तिथेचों की जघन्य - उत्कृष्टस्थितिको किस लिये कह दिया है ? इस प्रकार आक्षेप प्रवर्तने पर श्री विद्यानन्द आचार्य उत्तरवार्त्तिक द्वारा समाधान वचनको दर्पणवत् दिखलाते हैं ।
ते तिर्यग्योनिजानां च संक्षेपार्थमिहोदिते ।
स्थिती प्रकरणाभावेप्येषां सूत्रेण सूरिभिः ॥ १ ॥
प्रकरण नहीं होनेपर भी श्री उमास्वामी महाराजने इस सूत्रकरके इन तिर्यग्योनिमें जन्म लेने वाले जीवोंकी उन जघन्य उत्कृष्ट स्थितियों का निरूपण संक्षेप के लिये कर दिया है । अर्थात् - नारकियों और देवों की स्थिति के निरूपण अवसरपर चौथे अध्यायमें यदि तिर्यचों की आयुको कहा जाता तो “ तिर्यग्योनिजनां स्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते " इतना लंगूरकी लांगूलतुल्य लम्बा सूत्र बनाना पडता। अक्षरों और प्रतिपत्तिका गौरव हो जाता । किन्तु यहांपर " तिर्यग्योनिजानां च " इतने स्वरूप सर्षपसमान सूत्रसे ही समीहित अर्थ की सिद्धि होगई है । कर्मभूमि या भोगभूमि स्थानों में मनुष्यों के समान तिर्यच भी निवास करते हैं । अतः मनुष्यों के साथ तिर्यचों का भी प्रकरण योंकी संगति नारकियोंसे सर्वथा नहीं है। हां, देवों के साथ क्वचित् कदाचित् सम्मेलन हो जाता किन्तु मनुष्यों का तिर्यचों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है । अतः मनुष्यों का वर्णन करते समय तिर्यचोंका प्रकरण भी झटिति उपस्थित हो जाता है। 1
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नन्वसंख्येयेष्वपि द्वीपसमुद्रेषु दृष्टेषु सर्विद्वीपयपपंचं निरूपयतः सूत्रकारस्य किं चेतसि स्थितमित्याह ।
यहां कोई वावदूक पण्डित आशंका करता है कि पच्चीस कोटा कोटि प्रमाण नत्र असंख्यातें द्वीपसमुद्र इस तिर्यक् लोकमें देखे जा रहे हैं, तो उन द्वीपों को ही विस्तारसहित निरूपण कर रहे सूत्रकार श्री उमास्वामी महाराज के
। मनु
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उद्धार पल्यों समय
सभी मेंसे केवल ढाई
चित्तने कौनसी बात