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________________ ३६६ तत्वार्थ लोक वार्तिके पेंसठ हजार चार सौ छियालीस और तेरह बटे दो सौ बारह योजन पुष्करके भरतकी बाइरली चौडाई है । भावार्थ — कालोदधि समुद्रसे बाहरली ओर चुपटी हुई पुष्करार्धकी भीतरली परिधि इक्यानत्रै लाख सत्तर हजार छह सौ पांच ( ९१७०६०५ ) योजन है और पुष्करार्धको सैंतीस लाख व्यासवाले मध्यदेशकी " विक्खभवग्गादहगुणकरणी वहस्स परिरयो होदि " इस नियम अनुसार एक करोड सत्रह लाख चार सौ सत्ताईस ( ११७००४२७ ) योजन परिधि होती है । पैंतालीस लाखवाले पुष्करार्ध द्वीपकी बाहरली परिधि एक करोड बियालीस लाख तीस हजार दौ सौ उनचास ( १४२३०२४९ ) योजन है। एक अंकके बटे हुये भागों का यहां लक्ष्य नहीं रक्खा गया है । धातकी खण्डके बारहऊ कुलाचलोंसे पुष्करार्ध के बारहऊ कुलाचलोंकी चौड़ाई दूनी दूनी है । किन्तु इष्वाकार पर्वत दोनों द्वीपोंके एकसे एक एक हजार योजन चौडे हैं । अतः पुष्करार्ध में चौदह पर्वतोंसे रुका हुआ क्षेत्र तीन लाख पचपन हजार छह सौ चौरासी ( ३५५६८४ ) योजन है। उन तीनों प्रकारकी परिधियोंमेंसे पर्वत रुद्ध क्षेत्रको न्यून कर पुनः चौदह क्षेत्रोंकी दो सौ बारह शलाकाओंसे भाजित कर पश्चात् भरतकी एक शलाकासे गुणा कर देनेपर पुष्कराधिके भरतकी भीतरी, बिचली और बाहरी चौडाई निकल आती है। अतः इकतालीस हजार पांच सौ उनासी योजनसे क्रमवार बढता हुआ पैंसठ हजार चार सौ छियालीस योजन चौडा हो रहा और आठ लाख योजन लम्बा यह पुष्करार्धका भरत क्षेत्र उस जम्बूद्वीप के भरतसे हजारों गुणा बडा बैठता है । हां, 1 जम्बूद्वीपका हिमवान् पर्वत दस सौ बावन और बारह बटे उन्नीस योजन चौडा तथा चौतीस हजार नौ सौ बत्तीस और एक बटे उन्नीस योजन लम्बा है किन्तु पुष्करार्धका एक हिमवान् इससे चौगुना चार हजार दो सौ दश और दश बटे उन्नीस योजन चौडा तथा आठ लाख योजन लम्बा है । हां, जम्बूद्वीप के कुलाचल, वक्षार, नदी, हृद आदिको गहराई और ऊंचाई के समान ही धातकी खण्ड और पुष्करार्ध द्वीपों के कुलाचालों आदिकी गहराई या ऊंचाई है । यों जम्बूद्वीप के हिमवान् और पुष्करार्ध हिमवान् पर्वतका अन्तर स्पष्ट समझ लिया जाता है । भलें ही ढाई द्वीपमें छोटेसे जम्बूद्वीपको पूरा एक और विचारे पुष्करार्धको आधा गिन लो, " नाम बडे दर्शन थोडे " । । वर्षाद्वर्षश्चतुर्गुणविस्तार आविदेहात् । वर्षधराद्वर्षधरथा निषधात् । मानुषोत्तरशैलेन विभक्तार्धत्वात् पुष्करार्धसंज्ञा, पुष्करद्वीपस्यार्धं हि पुष्करार्धमिति प्रोक्तं । अत्र धातकीखंडवद्वर्षधराश्चारवदवस्थितास्तदंतरालवद्वर्षाः । कालोदमानुषोत्तर शैलस्पर्शिनाविष्वाकारगिरी दक्षिणोत्तरौ पूर्ववद्वेदितव्यौ पुष्करार्धवलय पूर्वापरविभागमध्यवर्तिनौ मेरू चेति प्रपंचः सर्वस्य विद्यानन्दमहोदये प्रतिपादितोवगंतव्यः तदेवं पहिले क्षेत्रसे अगला क्षेत्र चौगुना चौडा है । विदेहपर्यन्त यह व्यवस्था समझना चाहिये और निषधपर्वतपर्यन्त पहिले वर्षधर कुलाचलसे अगिला वर्षधर पर्वत चौगुना चौडा है तथा उत्तर दक्षिणवर्ती रचना तुल्य है। अर्थात्- पुष्करार्ध के भरतसे हैमवत क्षेत्रकी चौडाई चौगुनी है और हिमवानसे
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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