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________________ तत्वार्थचिन्तामणिः ३६५ समझ लेने चाहिये। सुवर्णमय इन पर्वतों का आकार ऋजु (सीधे ) लंबे बाणके समान है । अतः इनका नाम अन्वर्थ है । ये धातकी खण्डमें दक्षिण और उत्तर दिशाओं की ओर लंबे पडे हुये हैं । भीतर लवण समुद्र और बाहर कालोदधि समुद्रको छूरहे हैं । पहिला इष्वाकार लवणसमुद्र से दक्षिण की ओर और दूसरा लवणसमुद्रसे उत्तरकी ओर पसर रहा है । इन इष्वाकारोंसे घातकीखण्डवरूप कंकण के पूर्व धातकी खण्ड और पश्चिम धातकी खण्ड द्वीप यों विभाग होजाते हैं और उन दोनों विभागों के मध्यमें दो मेरु पर्वत प्राप्त होरहे हैं । जोकि जंबूद्वपिके सुदर्शन मेरुसे चौरासी हजार योजन ऊंचे हैं ! जंबूद्वीपमें जहां जंबूवृक्ष है, उसी प्रकार धातुकी वृक्ष है । धातकी खण्डका परिक्षेप करनेवाला आठ लाख योजन चौडा कालोदधि समुद्र है कालदधिमें भी बाह्य तट और अभ्यन्तर तटसे पांच सौ, साडे पांचसौ, और छह सौ योजन चलकर अडतालीस अंतरद्वीप हैं । उनमें कुभोग भूमिकी रचना है । कुछ छोटे हैं । खण्ड में धातकी अथ पुष्करार्धे कथं भरतादिर्मीयते तद्विष्कंभाचेत्याह । इसके पश्चात् किसी जिज्ञासुका प्रश्न है कि दयानिधे यह बताओ कि पुष्करार्ध द्वीपमें भरत आदिक भला किस प्रकार नापे जारहे हैं ? और उनकी चौडाई आदिकी क्या व्यवस्था है ? यो प्रश्न होने पर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको स्पष्ट कह रहे हैं । पुष्करार्धे च ॥ ३५ ॥ संपूर्ण पुष्कर में नहीं किंतु पुष्कर द्वीपके भीतरले आधे भागमें भरत आदिक दो बार संख्याद्वारा गिने जाते हैं । अर्थात् - जंबूद्वीप के भरत आदि या हिमवान् आदिकी अपेक्षा पुष्करार्धमें दो बार यानी दो भरत, हिमवान्, यो क्षेत्र, पर्वत, नदी, हृद, मेरु, कुण्ड आदि हैं । संख्याभ्यावृत्त्यनुवर्तनार्थञ्चशद्धः । धातकीखण्डवत्पुष्करार्धे च भरतादयो द्विर्मीयते । तत्रैकान्नाशीत्युत्तरपंचशताधिकैकचत्वारिंशद्योजन सहास्राणि सत्रिसप्ततिभागशतं च भरतस्याभ्यंतरविष्कंभः, द्वादशपंचशतोत्तराणि त्रिपंचाशद्योजन सहस्राणि नवनवत्यधिकं च भागशतं योजनस्य मध्यविष्कंभः, षट्चत्वारिंशश्चतुःशतोत्तरपंचषष्टिसहस्राणि त्रयोदश च भागा योजनस्य बाह्यविष्कंभः । द्विर्धातकीखण्डे ” इस पूर्व सूत्रसे " द्विर् " इस संख्या की अभ्यावृत्तिका अनुवर्तन के लिये यहां सूत्रमें च शब्द्व किया गया है । धातकी खण्ड के समान पुष्करार्ध में भी जम्बूद्वीप की अपेक्षा भ आदि दो बार गिने जाते हैं । इस पुष्करार्थ द्वीपमें भरत क्षेत्रकी भीतरली चौडाई इकतालीस हजार पांच सौ उनासी और एक सौ तिहत्तर बटे दो सौ बारह योजन है । पुष्करद्वीप के भरतकी त्रेपन हजार पांच सौ बारह और सौ बारह योजन मझिलीचौडाई एक सौं निन्यानवे बटे दो "6
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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