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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
उक्त काल मर्यादाने न्यूनता, अधिकता भी हो जाती है । विज्ञानप्रक्रिया द्वारा कबूतरी, मुर्गी, आदिका प्रसव शीघ्र भी करा दिया जा सकता है । पदार्थोंमें अचिंत्य निमित्त नैमित्तिक शक्तियां भरी हुई हैं । वर्षों के कार्य महीनोंमें और महिनोंके कार्य दिनोंमें तथा दिनोंके कार्य घण्टोंमें उपज जाते हैं । इस हीनताके तारतम्य अनुसार कल्पवृक्षोंसे भी उसी प्रकार उचित भोगोपभोगके योग्य पदार्थोकी प्राप्ति होजाती है । कल्पवृक्ष चाहे जो भी सभी पदार्थोको नहीं दे सकते हैं । आमके पेडपर अमरूद नहीं फलते हैं । इसी प्रकार पुत्र, गाय, घोडा, हाथी, मक्खी, चींटी, या चरखा, खात, कूडा, समाचारपत्र, पुस्तकें, अस्त्र, शस्त्र, आदि पदार्थोंको वे दस १० जातिके कल्पवृक्ष नहीं दे सकते हैं। क्योंकि पुत्र आदिके उपजानेकी उन कल्पवृक्षोंमें निमित्त नैमित्तिक शक्तियां या उपादान, उपादेय, व्यवस्थायें नहीं हैं । जब कि जगत्में पौरुषार्थिक या प्राकृतिक नियम अनुसार कार्योत्पत्तिमें अनेक विचित्रतायें दृष्टिगोचर होरहीं हैं। छकडों या बैलगाडियों द्वारा जो मार्ग महीनोंमें परिपूर्ण किया जाता . था रेलगाडियों या विमानों द्वारा वह मार्ग दिनों या घंटोंमें गमन कर लिया जाता है। मिनिटों या सैकिंडोंमें हजारों कोस दूर समाचार पहुंचा दिये जाते हैं । गुलाब शीघ्र उपजा लिया जाता है। उसका फूल दस गुना बडा कर लिया है । प्रयोगों द्वारा नीबकी कटुता न्यून कर दी जा सकती है। साङ्कर्य यानी कलम लगा देनेसे आम, लुकाट, सन्तरों आदिकी दशायें परिवर्तित हो जाती हैं । दुर्बल . मनुष्य अतिशीघ्र सबल और बलवान् जीव प्रयोगों या औषधियों द्वारा शीघ्र निर्बल किया जा सकता है । तथा भूमियां ऋतुयें या फलने, फूलने, के व्यवहारकाल उपादान द्रव्य आदिके अनुसार प्राकृतिक नियमोंमें विलक्षणतायें हैं । बीज बोये जानेसे पचास वर्ष पीछे खिरनीका वृक्ष फलता है। अखरोट कदाचित् इससे भी अधिक समय ले लेता है । इमली, कटहर वपन होनेके पश्चात् बीस, पच्चीस, वर्षमें फलित होते हैं | आम्रफल पांच, छह वर्षके वृक्षपर ही आ जाते हैं । बीज डालनेके दो वर्ष पीछे आडू या आलू बुखारे ये वृक्षपर लग जाते हैं । अरण्ड एक वर्षमें फल जाता है । बोये पीछे ग्यारह महीनेमें अरहर पक कर आ जाती है । गेंहू पांच महीनेमें, बाजरा मका तीन महीनेमें, समा चावल दो महीनेमें फल दे देता है । भूमिमें बोये जानेके पश्चात् पोदीना पन्द्रह दिनमें, मेंथी तीन दिनमें और सणी एक दिनमें नवीन पत्ते दे देती हैं । इसी प्रकार कल्प वृक्षोंसे कुछ मिनिटोंमें ही नियत पदार्थ उपज जाते हैं । ताडवृक्षकी छाल ताना वाना पुरे हुये वस्त्रके समान है। कई वृक्षोंपर कटोरा कटौरी सरीखे पत्ते या फल लग जाते हैं। तोरईका बाजा बजाया जा सकता है। लौकातुम्बी तो बीन, सितार, तमूरा, आदिमें उपयोगी हो रहे हैं। भांग, महुआ, ताडी, अंगूर, अफीम डोंडा आदि वृक्ष मदकारक पदार्थोके उत्पादक हैं । गेंहू, चावल, आम, अमरूद, केला आदि भोक्तव्य पदार्थोके वृक्ष प्रसिद्ध ही हैं। बहुभाग वस्त्र कार्यास वृक्षोंके फलोंसे बनाये जाते हैं। दीपकके उपयोगी पदार्थ तो तिल, सरसोंके, वृक्षोंसे या पार्थिव खानोंसे ही प्राप्त होते हैं । पुद्गलोंकी रगडसे चमकनेवाली बिजली बन जाती है.। बात यह है कि गम्भीर घष्टिसे विचारनेपर कल्पवृक्षोंसे
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