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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
मान आयुष्य कर्मकी स्थिति तो एक अद्धापल्योपम है। वे देवियां सामानिक जातिके देव और सभाओंमें बैठनेवाले परिषद् जातिके देवोंसे सहित होरहीं हैं । विशेषतः श्री, ही, धृति, तो सौधर्म इन्द्रकी आज्ञा मानती हैं और कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, ये ईशान इन्द्रकी आज्ञानुमार प्रवर्तती हैं। पांचों मेरु संबंधी देवियोंकी यही व्यवस्था है। ये सब ब्रह्मचारिणी हैं। भगवान्की माताकी सेवामें इनका विशेष अनुराग है।
तेषु पुष्करेषु निवसनशीलास्तन्निवासिन्यः, देवगतिनामकर्मविशेषादुपजाता इति देव्यः श्रीप्रभृतयः तत्र पद्मड्दपुष्करप्रासादेषु । शेषड्दपुष्करप्रासादेषु ड्रीमभृतयो यथाक्रमं निवसंतीति यथागमं वेदितव्यं । ताः पल्योपमस्थितयस्तावदायुष्कत्वेनोत्पत्तेः । सामानिकाः परिषदश्च वक्ष्यमाणलक्षणाः सह ताभिर्वर्तत इति ससामानिकपरिषत्काः । एतेन तासां परिवारविभूतिं कथितवान् । एतदेवाह
जिन देवियोंकी टेव उन पुष्करोंमें निवास करनेकी है, वे देवियां तनिवासिनी कही जाती हैं। निवास शद्बसे शील अर्थमें तद्धितान्त इन् प्रत्यय कर दिया जाता है। नामकर्मकी उत्तर प्रकृति देवगति नामक नामकर्मके उत्तरोत्तर भेदस्वरूप विशेषकर्मसे विशेष व्यंतरोंमें उत्पन्न हुयीं हैं । इस कारण श्री, ही, आदिक देवियां मानी जाती हैं । पद्मह्रदके कमलमें बन रहे प्रासादोंमें श्रीदेवी निवास करती है तथा शेष ह्रदवर्ती पुष्करोंमें बने हुये प्रासादोंमें यथाक्रमसे ही, धृति आदि देवियां निवास करती हैं। यों आगम मर्यादाका अतिक्रमण नहीं कर समझ लेना चाहिये । अर्थात्-उन कमलोंकी कर्णिकाके बीचमें एक कोस लम्बा आधा कोस चौडा कुछ कम एक कोस ऊंचा महल बना हुआ है उसमें देवी रहती है । यहां प्रासादोंका बहुतपना यों घटित हो जाता है कि एक कमलमें भी कई प्रासाद सम्भवते हैं तथा एक कमलके परिवार हो रहे एक लाख चालीस हजार एक सौ पचास कमलोंपर भी इतने ही प्रासाद बने हुये हैं अथवा पांच मेरु सम्बन्धी पांच पद्म ह्रदोंके पांच महलोंमें न्यारी न्यारी आत्माओंको लिये हुये भिन्न भिन्न पांच श्री देवियां निवास करती हैं, इत्यादि रूपसे आम्नायके अनुसार यों सम्पूर्ण व्यवस्था बन जाती है । वे देवियां पल्योपम स्थितिको धार कर उतने कालतक जीवित रहती हैं। पुनः एक देवीके मर जानेपर दूसरी देवी उपज जाती है। क्योंकि उतने एक पल्य परिमाणवाले आयुसे सहितपने करके उनकी वहां उत्पत्ति हुआ करती है ( हेतु )। सामानिक और परिषद जातिके देवोंका लक्षण भविष्यमें कह दिया जायगा। ये देव उन देवियोंके साथ कमलोंमें उन देवियोंके अनुगामी होकर वर्तते हैं। इस कारण देवियोंको सामानिक और परिषद सम्बन्धी देवोंसे सहितपना कहा गया है। इस विशेषणसे उन देवियोंकी परिवार सम्बन्धी विभूतिको सूत्रकार कह चुके हैं । इसी बातको श्री विद्यानन्द आचार्य वार्तिक द्वारा कहते हैं ।
देव्यः श्रीमुखाः ख्याताः सूत्रेणैकेन सूचनात् । षडेव तन्निवासिन्यस्ताः ससामानिकादयः ॥१॥