________________
३२०
तत्त्वार्यलोकवार्तिके
" द्वीपसमुद्र " शब्द बन जाता है । तेलमें सलिलके डालनेपर या जलमें तेलको गिरा देनेपर तेल ही ऊपर आजायगा | यहां भी समुद्र शद्वमें तीन स्वर हैं और द्वीप शद्बमें दो अच् हैं अतः अल्प अच् सहितपना होनेसे भले ही शब्दसंबंधी न्यायसे द्वंद्वमें द्वीप शद्बका पूर्वमें उच्चारण होजाय तो भी अर्थसम्बन्धी न्यायसे द्वीप समुद्रपदसे समुद्र आदिका ही परामर्श किया जाता है। तिस कारणसे सूत्रकार द्वारा यह कह दिया गया समझा जाता है कि उन समुद्र आदिकोंके मध्यको इस सूत्रों तन्मध्यपदसे लिया गया है । उन समुद्र आदिकोंके मध्यमें जम्बूद्वीप है। यद्यपि " जंबूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः " इस सूत्रमें शद्वशास्त्र और अर्थशास्त्र दोनोंके अनुसार द्वीपसमुद्राः कहना शोभता है । अन्यथा जग्बूद्वीपको समुद्रपना और लवणोदको द्वीपपना प्राप्त हो जायगा । फिर भी " द्विििवष्कमाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ” और “ तन्मध्ये मेरुनाभित्तो योजन शतसहस्रविष्कंभो जम्बूद्वीपः " इन दोनों सूत्रोंमें अर्थसम्बन्धी न्यायके अनुसार समुद्र, द्वीप, यों समाम्नाय करनेसे समीचीन प्रतिपत्ति हो जाती है । यथायोग्य सन्तोष हो जानेपर फिर भी कुचोद्योंका तांता नहीं तोडने के लिये सदा मुंह उठाये रखना गम्भीर शास्त्रीय विद्वानोंको शोभा नहीं देता है।
स च मेरुनाभिरुपचरितमध्यदेशस्थमेरुत्वात् । वृत्तो न चतुरस्रादिसंस्थानः । तत्परिक्षेपिणां वलयाकृतिवचनादेव तस्य वृत्तत्वं सिद्धमिति चेन्न, चतुरस्रादिपरिक्षेपिणामपि वलयाकृतित्वाविरोधात् । ग्रोजनशतसहस्रविष्कंभ इति वचनात् तद्विगुणद्विगुणविष्कंभादिनिर्णयः शेषसमुद्रादीनां कृतो भवति । एवं च । ____ और वह जम्बूद्वीप उभरी हुई नाभिके समान मेरुको मध्यमें धार रहा है। क्योंकि उसके उपचारसे माने गये मध्यदेशमें मेर स्थित हो रहा है । मेरुस्थानको जम्बूद्वीपका उपचारसे मध्यभाग यों माना गया है कि लोकका मध्य तो सुदर्शन मेरुके जडमें केन्द्रीभूत हो रहे आठ प्रदेश हैं । अतः मध्यलोक स्वयं ऊर्ध्वलोकमें विराज रहा उपचरित है। अधोलोकसे ऊपर और ऊर्ध्वलोकके निचले भागमें सात राजू लम्बे, एक राजू चौडे और मेरुसम ऊंचे स्थानको यदि मध्यलोक माना जाता है तो इसका ठीक मध्य भी मुदर्शन मेरुकी जडमें स्थित आठ प्रदेशोंसे पचास हजार वीस ५००२० योजन ऊपर चलकर चार प्रदेश मिलेंगे। जहां कि जम्बूद्वीप कथमपि विद्यमान नहीं है, वहां तो सुदर्शन मेरु खडा हुआ है । हां, ऊर्च अधो दिशाका लक्ष्य नहीं कर केवल मध्यलोकके निचले हजार योजन टुकडेकी पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, चार ही दिशाओंका मध्यभाग लिया जाय तो जम्बूद्वीपको मध्यमें स्थित हो रहा कह सकते हैं । वज्रा पृथिवीके उपरिम मध्यवर्ती समतल प्रदेशोंपर मेरु पर्वत धरा हुआ है, वह लोकका मध्य भले ही कह दिया जाय, किन्तु वह स्थल जम्बूद्वीपका मध्य तो कथमपि नहीं कहा जा सकता है । अतः मेरुके ( मेरुकी जडके ) ठहरनेके स्थानको जम्बूद्वीपका मध्य उपचारसे माना गया है। वह जम्बूद्वीप