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तत्वार्थ लोकवार्तिके
ऊर्ध्वाधोलोकवचनसामर्थ्यान्मध्यलोकस्तावद्गत एव यस्मादधोरत्नप्रभायाः सप्तभूमयः प्रतिपादितास्तस्मिन् मध्यलोके द्वीपसमुद्राः संक्षेपादभिहिताः सूत्रद्वयेन प्रपंचतोसंख्येयास्ते यथागमं प्रतिपत्तव्याः ।
ऊर्ध्व लोक और अधोलोकके कथन कर देनेकी सामर्थ्यसे मध्यलोक तो अपने आप जान लिया जाता ही है जिस कारणसे कि अधोलोक में रत्नप्रभा आदिक सात भूमियां कही जा चुकी हैं । उस मध्यलोक द्वीप समुद्र हैं जो कि संक्षेपसे दो सूत्रों करके उमास्वामी महाराजने कह दिये हैं। विस्तारसे कथन करनेपर वे द्वीप समुद्र पच्चीस कोटा कोटी उद्धार पल्योंके समय प्रमाण नियत संख्यावाले असंख्यात हैं । उनको आप्तोक्त आगम अनुसार समझ लेना चाहिये । लवण समुद्रका जल ऊंचा उठा हुआ है, पुष्कर द्वीपके मध्यमें मानुषोत्तर पर्वत पडा हुआ है, नन्दीश्वर द्वीपमें सोलह बावडी और बावन जिन चैत्यालय अनादि निधन बने हुये हैं, ढाई द्वीपसे बाहर तिर्यक्लोक में जघन्य भोग भूमिकी सी रचना है। अन्तिम आधे द्वीप और अन्तके समुद्र तथा मध्यलोक की त्रसनाली के चारों कोनोंमें कर्मभूमिकीती प्रक्रिया है। मोक्षमार्गकी व्यवस्था नहीं है । तथापि पांचवें गुणस्थानको भी धारनेवाले असंख्य तिर्यच वहां स्वयंप्रभ पर्वतके परली ओर पाये जाते हैं, इत्यादिक विशेष व्याख्यानको आकर ग्रन्थों के अनुसार समझ लेना चाहिये ।
क पुनरयं जंबूद्वीपः कीदृशवेत्याह ।
यह जम्बूद्वीप फिर कहां और किस प्रकारका व्यवस्थित हैं ? यो जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज उत्तरवर्ती सूत्रको कहते हैं ।
तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजनशतसहस्रविष्कंभो जंबूद्वीपः
उन सम्पूर्ण पूर्वोक्त द्वीप समुद्रों के मध्य में जम्बूद्वीप विराजमान है और उस जम्बूद्वीपके ठीक मध्यमें सुमेरुपर्वत नाभिके समान व्यवस्थित है । जम्बूद्वीप थालीके समान गोल है । और एक लाख योजन चौडा है
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तच्छद्रः पूर्वद्वीपसमुद्रनिर्देशार्थः । जंबूद्वीपस्य निर्देशमसंग ः पूर्वोक्तत्वाविशेषादिति चेत्, तस्य प्रतिनियतदेशादितया प्रतिपाद्यत्वात् तत्परिक्षेपिणामेव परामर्शोपपत्तेः । तर्हि पूर्वोक्तसमुद्रद्वीपनिर्देशार्थस्तच्छद् इति वक्तव्यं जंबूद्वीपपरिक्षेपिणां समुद्रादित्वादिति चेन्न, स्थितिक्रमस्या विवक्षायां पूर्वोक्तद्वीपसमुद्रनिर्देशार्थ इति वचनाविरोधात्, यत्र कुत्रचिदवस्थितानां द्वीपानां समुद्राणां च विवक्षितत्वात् । द्वीपशद्वस्याल्पाच्तरत्वाच्च द्वंद्वे पूर्ववचनेपि समुद्रादय एवार्थान्न्यायात् परामृश्यते । तत इदमुक्तं भवति तेषां समुद्रादीनां मध्यं तन्मध्यं तस्मिन् जंबूद्वीपः ।