SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्वार्थचिन्तामणिः ३१५ चला नृलोके ज्योतिष्काः सर्वत्राष्टौ स्थिरा भुवः । दुःखार्ता नारका ध्याता संवेगात्यै भवन्तु नः॥१॥ अधोलोकका वर्णन कर चुकनेपर श्री उमास्वामी महाराज अब मध्यलोक या तिरछे फैल रहे तिर्यक्लोकका वर्णन करते हुये द्वीप, समुद्रोंको समझाते हैं। जम्बूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ॥७॥ सात राजू लम्बे, एक राजू चौडे, और मेरुसमान एक लाख चालीस योजन ऊंचे मध्यलोकमें या एक राजू लम्बी चौडी और चौदह राजू ऊंचीमेंसे केवल मेरुसम ऊंची इतनी चौकोर बसनालीमें इक्षुवर, घृतवर, नन्दीश्वर, ऐसे शुभनामवाले असंख्याते जम्बूद्वीप, धातकी द्वीप, आदिक द्वीप और लवणसमुद्र, कालोदक समुद्र आदिक समुद्र स्वयम्भूरमणपर्यन्त तिरछे गोल रचित हो रहे हैं। प्रतिविशिष्टजंबूवृक्षासाधारणाधिकरणाज्जंबूद्वीपः, लवणोदकानुयोगाल्लवणोदः । आदिशद्धः प्रत्येकमभिसंबध्यते तेन जंबूद्वीपादयो द्वीपा लवणोदादयः समुद्रा इति संप्रत्ययः । शुभनामान इति वचनादशुभनामत्वनिरासः। अकृत्रिम, अत्यधिक सुन्दर, सपरिवार, जम्बूवृक्षका असाधारणरूपसे अधिकरण होनेसे यह मध्यवर्तीद्वीप जम्बूद्वीप कहा गया है । अर्थात्-उत्तरकुरु भोगभूमिमें सुदर्शन नामका पृथ्वीमय, जम्बूवृक्ष, अनादि निधन, रत्नमय, बना हुआ है, जो कि वृक्ष अन्य द्वीपोंमें हो रही साधारण रचनासे असाधारणपनेको धार रहा है । इस जम्बूवृक्षके सहचारसे द्वीपका नाम जम्बूद्वीप पड गया है । वस्तुतः सिद्धान्त यह है कि शब्द तो संख्याते ही हैं और ढाई सागरके समयों प्रमाण संख्यावाले द्वीप, समुद्र, असंख्याते हैं । ऐसी दशामें उन द्वीपोंमें लाखों जम्बूद्वीप होंगे और लाखों ही लवणसमुद्र नामको धारनेवाले समुद्र होंगे । करोडों धातकी खण्ड द्वीपोंकी सम्भावना है। अतः इस मध्यवर्ती द्वीपकी जम्बूद्वीप यह संज्ञा अनादिकालसे यों ही निमित्तान्तरानपेक्ष चली आ रही है। यही उत्तर धीमानोंको संतोषकारक है। लवण समुद्रके जलका स्वाद नोंन मिले हुये जल सरीखा है । अतः लवणमिश्रितजल सारिखे जलका योग हो जानेसे पहिले समुद्रका नाम लवणोद पड गया है । द्वन्द्व समासके अन्तमें पडे हुये आदि शद्वका सम्पूर्ण पदोंमेंसे प्रत्येकपदके साथ सम्बन्ध कर लिया जाता है। तिस आदि शब्द्ध करके जम्बूद्वीप आदिक द्वीप और लवणोद आदि अनेक समुद्र यह भले प्रकार निर्णय हो जाता है। सूत्रों " शुभनामानः " ऐसा कथन करनेसे द्वीप समुद्रोंके अशुभनाम सहितपनका निराकरण हो जाता है । अर्थात्-जम्बूद्वीप, लवणोद, धातुकीखण्ड, कालोद, पुष्करवर, पुष्करीद. वारुणीवर, वारुणोद, क्षीरवर, क्षीरोद, घृतवर, घृतोद, इक्षुवर, इशूद, नन्दीश्वर, नन्दीश्वरोद, अरुणवर, अरुणोद, अरुणाभासवर, अरुणाभासोद, क्रण्डलवर, क्रण्डलोद, रुचकवर, रुचकवरोद, भुजगवर, भुज
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy