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तत्त्वार्यचिन्तामणिः
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अथ रत्नप्रभादिनरकेषु त्रिंशल्लक्षादिसंख्येषु यथाक्रमं स्थितिविशेषप्रतिपत्त्यर्थमाह ।
इसके अनन्तर अब श्री उमास्वामी महाराज तीस लाख, पच्चीस लाख, आदि संख्यावाले रत्नप्रभा आदि भूमियोंमें स्थित हो रहे नरकोंमें यथाक्रमसे उपार्जित आयुष्य कर्म द्वारा हो रही स्थिति विशेषकी प्रतिपत्ति करानेके लिये अग्रिम सूत्रको कहते हैं ।
तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा सत्त्वानां परा स्थितिः ॥ ६ ॥
उन चौरासी लाख नरकोंमें निवास करनेवाले नारक प्राणियों की अनुक्रमसे एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दश सागर, सत्रह सागर, बाईस सागर, तेतीस सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है । सागर उपमा येषां तानि सागरोपमा णि, सागरस्योपमात्वं द्रव्यभूयस्त्वात् । एकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयत्रिंशत्सागरोपमाणि यस्या सा तथेत्येकादीनां कृतद्वन्द्वानां सागरीपमविशेषणत्वं ।
अलौकिक मान द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भेदोंसे चार प्रकारका है । तिनमें द्रव्यमान के संख्याप्रमाण और उपमा प्रमाण दो भेद हैं । उपमा प्रमाणके आठ भेदोंमें सागर नामका भी प्रकार है, जिन मानों या आयुओंकी उपमा लवण समुद्र है, वे सागरोपम हैं । अलौकिक मानोंमें सागरको उपमापना तो जल द्रव्यकी बहुलतासे दिया गया है । अद्धापल्यते दश कोटाकोटी गुणी बडी और सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग छोटी सागर नामक एक उपमा प्रमाणसे नापी गयी संख्याविशेष है । एक योजन लम्बे, चौडे, गहरे, गर्तको, जन्मसे सात दिन भीतर के मैढाके कर्तरीसे पुनः छिन्न नहीं हो सकें ऐसे बालाप्रोंसे भरकर पुनः सौ सौ वर्ष पीछे निकालते हुये जितना समय लगता है, वह व्यवहार पल्य समझा जाता है। व्यवहार पल्यसे असंख्यात गुणा उद्धारपल्य है, अद्धापल्य तो इससे भी असंख्यात गुण है । एक योजनवाले पल्य के समान दो लाख योजन चौडे और पांच लाख योजन व्यासवाले हजार योजन गरे लवण समुद्रको वैसे ही रोमोंसे भरा जाय और छह केशों को घेरनेवाले जलके उलीचने में यदि पच्चीस समय लगें तो पूरे लवण समुद्रको खाली करनेमें कितने समय लगेंगे ? यों त्रैराशिक की जाय तब दश कोटी लब्ध आ जाता है । यह सागर परिमाणकी उपपत्ति है । जिस स्थितिका एक, तीन, सात, दश, सत्रह, बाईस, तेतीस, सागरोपम परिमाण है, वह स्थिति उस प्रकार " एकत्रितप्तदशसप्तद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत् सागरोपमा " कही जाती है। इस प्रकार एक और तीन और सात और दश और सत्रह और बाईस और तेतीस यों द्वन्द्व समास किये जा चुके एकत्रि आदि पदों को सागरोपमका विशेषण होना समझ लिया जाता है ।