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तत्वार्थचिन्तामणिः
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घनांबुपवनाकाशप्रतिष्ठाः सप्तभूमयः । रत्नप्रभादयोऽधोधः संभाव्या बाधकच्युतेः ॥ १ ॥
नीचे नीचे प्रदेशोंमें रचनाको प्राप्त हो रहीं और प्रत्येक भूमियां यथाक्रमसे घनवात, अम्बुवात, तनुवात, और आकाशपर दृढ प्रतिष्ठित हो रहीं ये रत्नप्रभा उदिक सात भूमियां ( पक्ष ) स्वकीय / अस्तित्व करके संभावना करने योग्य हैं ( साध्य ), अस्तित्वके बाधक प्रमाणोंकी च्युति होनेसे ( हेतु ) । अर्थात् — सत्ताके बाधक प्रमाणोंका असम्भव हो जानेसे वस्तुका सद्भाव निर्णीत कर लिया जाता है । वही उपाय सात भूमियों और उनके आलम्बनोंके सद्भावका अव्यर्थ प्रसाधक है ।
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न हि यथोदितरत्नप्रभादिभूमिप्रतिपादकवचनस्य किंचिद्वाधकं - कदाचित् संभाव्यते इति निरूपितप्रायं ।
सर्वज्ञ आम्नाय अनुसार कह दी गयीं रत्नप्रभा आदिक भूमियोंका प्रतिपादन करनेवाले सूत्र वचनका कभी कोई भी बाधकप्रमाण नहीं सम्भव रहा है, इस बात को हम कई बार अन्य प्रकरणों में कह चुके हैं कि बाधक प्रमाणों के असम्भवसे पदार्थका अस्तित्व साध लिया जाता है ।
नम्वेताः भूमयोः घनानिलभतिष्ठाः घनानिलस्त्वंबुवातमतिष्ठः सोपि तनुवातमातिष्ठस्ततुवातः पुनराकाशमतिष्ठः स्वात्मप्रतिष्ठमाकाशमित्येतदनुपपन्नं, व्योमवदभूमीनामपि स्वात्मप्रतिष्ठत्वमसंगात् भूम्यादिवद्वाकाशस्याधारांतरकल्पनायामनवस्थाप्रसंगात् । ततो नात्र बाधकम्युतिरिति कश्चित्तं प्रत्याह' ।
आता
यहां कोई आक्षेप करता है कि आप जैनोंने जो यह कहा है कि ये सातों भूमियां नव पर प्रतिष्ठित होरही हैं और घनवात तो अम्बुवातपर आश्रय पारहा है तथा वह अम्बुवात भी तनुत्रातके अवलम्बपर सधा हुआ है। तनुवात फिर आकाशपर प्रतिष्ठित है तथा आकाश अपने स्वरूप में ही आधार, आधेय, बन रहा स्वाश्रित है । यों जैनियों का यह कथन सिद्धिको प्राप्त नहीं होपाता है। क्योंकि या तो आकाश के समान भूमियोंको भी अपने अपने निज स्वरूपमें प्रतिष्ठित होनेका प्रसंग अथवा भूमि या घनवात, आदिके समान आकाशका भी अन्य आधार मानना पडेगा और उस आधारके भी छट्टे, सातवें, आठवें आदि न्यारे न्यारे अन्य आधारोंकी कल्पना करते करते जैनों के ऊपर अनवस्था दोष आने का प्रसंग होता है । तिस कारण यहां बाधकच्युति नहीं है । अर्थात् भूमि और उनके आधारोंके सद्भावकी सिद्धि करनेमें जो बाधकाभाव हेतु दिया गया है, वह हेतु पक्ष में नहीं वर्तनेसे असिद्ध हेत्वाभास है । इस प्रकार कोई अपना नाम नहीं लेता हुआ आक्षेप कर रहा है, उसके प्रति श्री विद्यानन्दा स्वामी समाधान कहते हैं ।
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