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तत्वार्थचिन्तामणिः
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नहीं है । अतः निरंश परमाणु आकर मध्यवर्ती बनते समय छह पैलवाले
समसंख्यावाली पंक्तिका बीच एक निकालना गगनकुमुमके समान असम्भव है । सुदर्शन मेरुकी जडके पासवाली चित्रामें चार और नीचली वज्रामें चार यों गोस्तन या गोस्तनी दाख ( बडा अंगूर) के आकारको धारनेवाले आठ प्रदेश हैं । पुद्गल परमाणुसे या काल परमाणुसे नापे गये अखण्ड आकाशके कल्पित अंशको प्रदेश कहते हैं । जैसे आकाश जितना ही लम्बा उतना ही चौडा और उतना ही ऊंचा है, उसी प्रकार परमाणु भी जितना ही लम्बा है, उतना ही चौडा और उतना ही ऊंचा है। उससे छोटा टुकडा न हुआ, न है, न होगा । अतः परमाणु अविभागी कहा जाता है । परमाणुमें सामान्य गुण प्रदेशवत्त्व अवश्य है, उस गुणके द्वारा परमाणुका आकार लम्बाई, चौडाई, मोटाई, कुछ अवश्य होनी चाहिये। गेंद के समान परमाणुको गोल मानने पर तो लोकाकाशमें कालाणुओं के मध्य पोल रह जायगी । गोल पदार्थोंका ढेर कहीं निरन्तर ठसा - ठस नहीं भरा जा सकता है । लोकमें ठसाठस भरे हुये धर्म, अधर्म, या आकाशकी ठीक ठीक पूरी नाप सबसे छोटे गोल टुकडेसे नहीं हो सकती है । अतः परमाणु बर्फीके समान चौकोर मान लेना चाहिये । परमाणुमें पुनः कोई अंश नहीं है और अंशसे वह बनाया गया भी है । किन्तु पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ऊर्ध्व, अधः, छहों दिशाओंसे छह एक परमाणुसे चिपट जाते हैं । इस कारण परमाणु षडंश भी हैं । द्वयणुक एक परमाणु की एक ओरकी भींतसे दूसरे परमाणु की एक ओरकी भीत भिड वाला व्यणुक बन जाता है । यद्यपि एक परमाणुमें अनन्त परमाणु भी होकर एक प्रदेशमें विराज रहे हैं । किन्तु लम्बे, चौडे, घडे, पुस्तक, पर्वत, आदि अवयवी पदार्थोंको लिये परमाणु के साथ दूसरे परमाणुका एक ओर की भीतसे ही परस्पर संसर्ग मानने पडेंगे । अन्यथा सुमेरु और सरसोंका आकार समान हो जायगा । यदि गोल परमाणुसे छह गोल परमाणु चारों ओरसे चिपट बैठेंगे तो बीचमें पोल अवश्य रह जायगी । रबडके सदृश परमाणु घटता बढता नहीं है। अतः परमाणुको बर्फीके समान छह पैलवाला मानो । " अत्तादि अत्तमज्झं अत्तत्तं णव इंदिये गेज्जम्, जद्दव्वं अविभागी तं परमाणु विआणेहि " का भी यही अभिप्राय निकालना चाहिये । सिद्धान्त चक्रवर्ती श्री वीरनन्दी आचार्यने आचारसार के तृतीय अधिकार सम्बन्धी तेरहवें श्लोक में परमाणुको स्पष्ट रूपसे चौकोर अभीष्ट किया है । " अणुश्च पुद्गलोऽभेदावयवः प्रचयशक्तितः, कायश्च स्कन्धभेदोत्थश्चतुरस्रस्त्वतीन्द्रियः ”। परमाणु सूक्ष्म है उससे भी अत्यन्त सूक्ष्म आकाश है। यह जो दिन या रातमें उजेला या अंधेरा दीखता है वह तो पुद्गलकी पर्याय है । सूक्ष्म आकाशको तो सर्वावधिज्ञानी भी नहीं देख सकता है । केवलज्ञान या आगमप्रमाणसे आकाश जाना जाता है। सूक्ष्म, अतीन्द्रिय पदार्थोंमें सर्वज्ञधारा प्राप्त आगम ही प्रमाण है । जो कुछ युक्तियां थोडी बहुत मिल जांय उनको सेंत मेंतकी समझ कर लूट लो । अधिकके लिये हाथ मत बढाओ । आगमप्रमाण सम्पूर्ण प्रमाणोंका शिरोभूषण है । चार बर्फियों के ऊपर दूसरी चार बर्फियोंको घर देनेपर जो दशा ( सूरत ) बन जाती है,
जाती है, तब दो प्रदेशसर्वाङ्गीण संयुक्त या बद्ध