________________
तत्त्वार्थश्लोकवातिक
कर्मोके उपशम होनेपर उपजनेवाले स्वसंवेदन कर अन्य जीवोंमें भी दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीयके उपशमको साध लिया जाता है ।
ततो युक्तिमानौपशमिको भावो विभेदतः।
तिस कारणसे सम्यक्त्व और चारित्र इन दो भेदोंसे औपशमिकभाव युक्तिपूर्ण होता हुआ समझा दिया गया है।
तथा क्षायिको नवभेदः। तथा दूसरा क्षायिकभाव नौ भेदवाला है ।
कथामेति प्रतिपादनार्थ चतुर्थ सूत्रमाह । ___ वह क्षायिक भाव किस प्रकार नौ भेदोंको धारण कर रहा है ? इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज शिष्यको समीचीन प्रतिपत्ति करानेके लिये द्वितीय अध्यायमें चौथे सूत्रको स्पष्ट कह रहे हैं । उसको समझिये ।
ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च ॥४॥
ज्ञान १ दर्शन २ दान ३ लाभ ४ भोग ५ उपभोग ६ वीर्य ७ और सम्यक्त्व ८ चारित्र ९ इस प्रकार ये क्षायिकभावके नौ प्रकार हैं।
च शद्धेन सम्यक्त्वचारित्रे समुच्चीयेते । ज्ञानावरणक्षयात् क्षायिकज्ञानं केवलं, दर्शनावरणक्षयात्केवलदर्शनं, दानान्तरायक्षयादभयदानं, लाभांतरायक्षयाल्लाभः, परमशुभपुद्गलादानलक्षणः परमौदारिकशरीरस्थितिहेतुः, भोगांतरायक्षयाद्भोगः, उपभोगांतरायक्षयादुपभोगः, वीर्यातरायक्षयादनंतवीर्य, दर्शनमोहक्षयात्सम्यक्त्वं, चारित्रमोहक्षयाचारित्रमिति नवैते क्षायिकभावस्य भेदाः।
च अव्ययके कई अर्थों से यहां प्रकरण अनुसार समुच्चय अर्थ लिया गया है । इस सूत्रमें कहे गये च शब्द करके पूर्वसूत्रों कहे जा चुके सम्यक्त्व और चारित्रका समुच्चय ( इकट्ठा करना ) किया जाता है । अतः सात और दो नौ भेद क्षायिक भावके हो जाते हैं। तेरहवें गुणस्थानके आदिमें ज्ञानावरण कर्मोका क्षय हो जानेसे क्षय इस प्रयोजनको धारनेवाला सर्वज्ञ भगवान्के केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है । बारहमें गुणस्थानके अन्तमें ज्ञानावरणका उदय विद्यमान है। उस समय अवशिष्ट घाती कर्मीको क्षय करनेवाली पर्यायशक्ति प्रकट हो जाती है । वह उत्तर क्षण यानी तेरहवें गुणस्थानके आदि समयमें कर्मोका नाश कर क्षायिकलब्धियोंको जन्म देती है। दर्शनावरण कर्मके आत्यन्तिक क्षयसे सत्ताका आलोचन करनेवाला केवलदर्शनभाव उपजता है २ । दानान्तराय कर्मके क्षयसे अनंत