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ASH लोकवातिक
ચૂંટ
उन तैजस और कार्मणशरीरको आदि लेकर विकल्प प्राप्त किये जा रहे ये शरीर एक कालमें एक आत्मामें चातक हो सकते हैं ।
तद्ग्रहणं प्रकृतशरीरद्वयप्रतिनिर्देशार्थमादिशब्देन व्यवस्थावाचिनान्यपदार्था वृत्तिः, तेन तेजसकार्मण आदिर्येषां शरीराणां तानि तदादीनीति संप्रतीयते । भाज्यांनि पृथक्कर्तव्यानि । पृथक्त्वादेव तेषां भाज्यग्रहणमनर्थकमिति चेत्, तन्नैकस्यचिद्वित्रिचतुःशरीर संबंधविभागोपपत्तेः। युगपदिति कालैकत्वे वर्तते, आङभिविध्यर्थः । तेनैतदुक्तं भवति कचिदात्मनि विग्रहगत्यापन्ने द्वे एव तैजसकार्मणे शरीरे युगपत्संभवतः, कचित् त्रीणि तैजसकार्मणवैक्रियिकाणि, तैजसकार्मणौदारिकाणि वा कचिच्चत्वारि तान्येवाहारकसहितानि वैक्रियिकसहितानि वा ।
प्रकरण प्राप्त तैजस और कार्मण इन दोनों शरीरों का प्रतिनिर्देश ( परामर्श) करने के लिये इस सूत्र तत् शब्दका ग्रहण किया है । सर्वज्ञकी आम्नाय धारसि चले आ रहे आगमके अनुसार 1 व्यवस्थाको कहनेवाले आदि शब्दकै साथ तत् शब्दकी अन्य पदार्थको प्रधान रखनेवाली बहुव्रीहि सेमास वृत्ति कर ली जाती है । तिस कारण पूर्वसूत्रोंमें व्यवस्थाको प्राप्त हो रहे शरीरों की आनुपूर्वी अनुसार जिन शरीरोंकी आदि में तैजस और कार्मण शरीर हैं, वे तदादीनि इस पंदके द्वारा भले प्रकार प्रतीत कर लिये जाते हैं । अवयव के साथ विग्रह है और वृत्तिका अर्थ संमुदाय है । अतः तैजस और कार्मण भी ले लिये जाते हैं । सूत्रम पडे हुये भाज्यानि इस शब्दका अर्थ "संभावना प्रयुक्त 1 पृथक् पृथक् करने योग्य हैं " यह समझ लेना । यदि यहां कोई यों शंका करे कि ये शरीर परस्पर में और जीवसे पृथक्भूत हैं हीं, क्योंकि जीव उपयोगमय न्यारा है और वर्ण, गंध, स्पर्श, रस, वाले शरीर न्यारे हैं, अतः सूत्रमें भाज्यका ग्रहण करना व्यर्थ है । यों कहने पर तो आचार्य कहते हैं कि 1 वह शंकाकारका वचन ठीक नहीं है । क्योंकि किसी किसी एक आत्मा के दो, तीन, अथवा चार शरी
के साथ सम्बन्ध हो जानेका विभाग बन रहा है । यह भाज्य शब्दका तात्पर्य है । इस सूत्र में पडे हुये
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युगपत् " इस शङ्खका अर्थ कालके एकपनेमें प्रवर्तता है । आका अर्थ अभिविधि है, जिससे कि चार संख्यावाले शरीर भी ग्रहण कर लिये जाते हैं । आङ्का अर्थ मर्यादा करनेपर चार शरीरका सम्बन्ध छूट जाता । तिस कारण सूत्रका समुदित वाक्य बनाकर यह कह दिया जाता है कि मरकर विग्रह गतिको प्राप्त हो रहे किसी एक आत्मामें तैजस और कार्मण ये दो ही शरीर एक कालमें संभव हैं। हां, जन्म ले चुकने पर किसी देव या नारकी जीवके तैजस, कार्मण, और वैक्रियिक ये तीन शरीर पाये जाते हैं अथवा कहीं मनुष्य या तिर्यचके तैजस, कार्मण, और औदारिक ये तीन शरीर संभव जाते हैं । कहीं छठे गुणस्थानवर्ती मुनिके ये ही तीनों शरीर आहारकसे सहित होते हुये चार पाये जाते हैं अथवा वे तैजस, कार्मण, और औदारिक यदि वैक्रियिक शरीरसे सहित हो जाय तो भी एक समय में एक साथ चार शरीर संभव जातें हैं । यद्यपि वैक्रियिकयोग द्वारा ग्रहण की गई आहारवर्ग