________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
पडता । अत्यल्प बोलनेवाले सूत्रकारके वचन व्यर्थ नहीं हो सकते हैं । अतः यहां सम्पूर्ण गतिवाले पदार्थों का ग्रहण कर लिया जाता है । कोई पण्डित गति ग्रहणका प्रयोजन यों कह रहा है कि अन्य क्रियाओंकी निवृत्तिके लिये यहां सूत्रमें गति कहा गया है, जिससे जीवकी गतिक्रिया ही ली जाय, अन्य क्रियायें नहीं पकडी जायं । आचार्य कहते हैं कि यह प्रयोजन तो ठीक नहीं है । क्योंकि दूसरे शरीरको ग्रहण करनेके लिये उद्युक्त हो रहे जीवके बैठना, सोना, बढना, जगना, नमना, पढना आदि क्रियाओंकी तो संभावना ही नहीं है । अतः स्वतः ही अन्य क्रियाओंकी निवृत्ति सिद्ध है । " सम्भवव्यभिचाराभ्यां स्याद्विशेषणमर्थवत्" । दूसरी बात यह है कि अव्यवहित उत्तरकालमें कहे जानेवाले " अधिग्रहा जीवस्य " सूत्रमें जीवका ग्रहण है । अतः इस सूत्रमें शरीर या पुद्गल और जीवकी भी श्रेणि अनुसार गति हो रही अच्छी जानी जा रही है ।
ननु च कुतो जीवस्य पुद्गलस्य चानुश्रेणिगतिनिश्चिता ज्योतिरादीनां विश्रेणिगतिदर्शनात् तनियमानुपपत्तेरिति कश्चित् । तं प्रत्याह ।
यहां शंका उठती है कि जीव और पुद्गलकी गति श्रेणि अनुसार ही है, यह सिद्धान्त कैसे निर्णीत कर लिया जाय ? जब कि सूर्य, चंद्रमा आदि ज्योतिष्क विमान, चक्र, व्यजन, आदि अथवा विद्याधर या खिलाडी बालकों आदिकी श्रेणिका व्यतिक्रम कर भी टेडी, मेडी, घूमती, फुदकती, आदि अमेक प्रकारकी गतियां देखी जारही हैं । अतः आकाशकी ठीक बनी हुयी श्रेणियोंके अनुसार सीधी रेखामें ही गति होनेका नियम नहीं बन सकता है, यहांतक कोई कह रहा है, जिसका कि नाम या मत अनिर्वचनीय है । उसके प्रति श्री विद्यानन्द आचार्य वार्तिक द्वारा समाधान कहते हैं।
सिद्धा गतिरनुश्रेणि देहिनः परमागमात् ।।
लोकांतरं प्रतिज्ञेयं पुद्गलस्य च नान्यथा ॥ ७ ॥
जीवकी मरण समय या मुक्त अवस्था होनेपर अन्य लोक या सिद्ध लोकके प्रति और पुद्गलोंको भी लोकपर्यंत प्राप्त करानेवाली गति श्रेणि अनुसार होती है, यह मन्तव्य सर्वज्ञोक्त परम आगमसे सिद्ध है। अन्य प्रकारोंसे नियम नहीं हैं, यह समझ लेना चाहिये। अर्थात्-श्रेणि अनुसार ही गति होती है, इसमें काल और देशका नियम है। कालनियम तो यह है कि संसारी जीवोंकी मरणकालमें अन्य भवका संक्रमण करते समय और मुक्त जीवोंकी ऊर्ध्व लोकके तनुवातवलयमें स्थित सिद्धालयतक गमन करते समय प्रदेशपंक्तियों के अनुसार सरल रेखा बनाती हुयी गति होती है। तथा देशका नियम भी यह है कि ऊर्ध्व लोकसे अधोलोकमें जानेपर या अधोलोकसे ऊर्ध्व लोकमें गति करनेपर अथवा तिर्वग् लोकसे अधोगति या ऊर्च गति जहां होगी वह श्रेणि अनुसार ही होगी। इसी प्रकार पुद्गलोंकी लोकके अन्ततक प्राप्त करानेवाली गति भी श्रेणी अनुसार ही होगी । हां, नियमसे अतिरिक्त दशामें घूमना, नाचना, आदि गतियां भी हो सकती हैं।
24