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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
आदि शवों को अन्वर्थ साथ लेना चाहिये । चुरादिगणकी मिश्र सम्प धातुसे अच् प्रत्यय कर मिश्र शant बना लेना चाहिये । द्विरेफ शद्वसे लक्षणा द्वारा दो रफारवाला जैसे भ्रमर शब्द कह दिया जाता है, वैसे मिश्र शब्द द्वारा क्षायोपशमिक शकी उपस्थिति करते हुये क्षयोपश शङ्खसे ठञ् प्रत्यय कर क्षायोपशमिक शद्वकी निरुक्ति साध लेनी चाहिये ।
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प्रागोपशमिकरयोक्तिर्भव्यस्यानादिसंसृतौ ।
वर्तमानस्य सम्यक्त्वग्रहणे तस्य संभवात् ॥ ७ ॥
सभी संसारी जीवों में साधारण रूपसे पाये जाते हैं, अतः औदयिक और पारिणामिकका सूत्र पहिले ग्रहण होना चाहिये, ऐसी आशंकाकी सम्भावना होनेपर श्री विद्यानन्द स्वामी प्रथम ही समाधान कर देते हैं कि यह ग्रन्थ मोक्षकी शिक्षा देनेवाला मोक्षशास्त्र है । मोक्षका प्रधान कारण सम्यग्दर्शन हैं, अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण कर वर्त रहे भव्य जीवके आदिम सम्यक्त्व ग्रहण करनेपर मोक्षोपयोगी सम्पूर्ण भावों के प्रथम उस औपशमिक सम्यक्त्व परिणामका होना सम्भवता है अतः आदिम सम्यक्त्वकी अपेक्षा सम्पूर्ण भावोंमें पहिले औपशमिकका कथन सूत्रकारने किया है।
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स्तोकत्वात्सर्वभावेभ्यः स्तोककालवतोपि वा ।
शेषेभ्यः क्षायिकादिभ्यः कथंचिन्न विरुध्यते ॥ ८ ॥ ततस्तु क्षायिकस्योक्तिरसंख्येयगुणत्वतः । भव्यजीव स्वभावत्वख्यापनार्थत्वतोपि च ॥ ९ ॥ क्षायोपशमिकस्यातो या संख्येयगुणत्वतः । युक्तास्ति तद्वयात्मत्वाद्धव्येतरसमत्वतः ॥ १० ॥ उक्तिरोदयिकस्यातस्तेन जीवावबोधतः । पारिणामिकभावस्य ततोंते सर्व स्थितेः ॥ ११ ॥
दूसरी बात यह है कि गुणवान् पदार्थोंका अल्पपना भी लोक में आदर प्राप्तिका हेतु है । आदरणीय पदार्थका सबसे पहिले उच्चारण हो जाता है । क्षायिक, क्षायोपशमिक आदि सम्पूर्ण भावोंसे औपशमिकभाव अत्यल्प हैं । अथवा क्षायिक आदि भावोंसे युक्त हो रहे जीवों की अपेक्षा औपशमिक भावोंको धारनेवाले जीव असंख्यातवें भाग या अनन्त भाग पाये जा रहे, थोडे हैं । कचित्, कदाचित् ही पाये जांय ऐसे पदार्थ अद्भुतागार ( अजायबघर ) में प्रथम शोभा स्थानपर विराजमान