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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः हो सके अथवा बुद्धिको आदि लेकर सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, भावना ये नौ ही आत्माके विशेष गुण हैं, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाव ये पांच गुण आत्माके सामान्य हैं, इस प्रकार नौ और पांच मिलकर चौदह ही गुण आत्माके व्यवस्थित हो सकें, अन्य अस्तित्व, द्रव्यत्व, चारित्र, वीर्य, आदि अनन्त गुणोंका वैशेषिक सिद्धान्त अनुसार निषेध कर दिया जाय, अथवा केवल आनन्द ही एक गुण ब्रह्मका स्वरूप है, यह ब्रह्मवादियोंका सिद्धान्त व्यवस्थित हो सके, अथवा यह चित्त स्वरूप आत्मा केवल चमक रहा, प्रभास्वर गुणवाला ही है, इस प्रकार मीमांसक, बौद्ध आदि दार्शनिकोंके मन्तव्य व्यवस्थित ठहर सकें । जब कि स्वसम्वेदन प्रत्यक्षसे पांच भावोंके साथ आत्माका उपजीव्य, उपजीवक स्वरूप तादात्म्य प्रतीत हो रहा है, ऐसी दशामें केवल चैतन्य ही या नौ विशेष गुण ही अथवा केवल आनंद गुण ही तथा प्रभास्वर गुण ही का आत्माके साथ उपजीन्य उपजीवक भाव साधनेका कोई प्रमाण नहीं है । जिन गुण या स्वभावोंकरके पदार्थ आत्म लाभ किये हुये हैं, वे उपजीवक माने जाते हैं और उन करके आत्मलाभ कर रहा पदार्थ उपजीव्य समझा जाता है । पांच भाव जीवके उपजीवक हैं। अनादि और सादि सहभावी क्रमभावी पर्यायोंको धारनेवाला जीव तत्त्व है । शुद्ध परमात्मा द्रव्य हो रहे सिद्ध भगवानोंमें यद्यपि औपशमिक, क्षायोपशमिक और औदयिक ये तीन प्रकारके भाव नहीं है । सिद्धोंमें पारिणामिक और क्षायिकभाव ही हैं । तथा बहुभाग अनंतानंत संसारी जीवोंमें क्षायिकभाव या औपशमिक भाव नहीं पाये जाते हैं, तो भी जिन जीवोंमें पांचों भावोंमें से यथायोग्य दो ही तीन ही चारो ही अथवा क्षायिकसम्यग्दृष्टि पंचेंद्रियपुरुष जीवके ग्यारहवें गुणस्थानमें पांचों, यों जितने भी सम्भव पाये जाते हैं, सब जीवके तदात्मक हो रहे असाधारण स्वभाव हैं । अतः प्रमाणोंसे युक्तिसिद्ध हो रहे, पांच औपशमिक आदिक स्वभाव तो जीवके असाधारण स्वभाव हैं। दूसरे अध्यायमें सूत्रकार श्री उमास्वामी महाराज करके पहिले सात सूत्रोंके समुदाय करके पांच भाव कहे गये हैं। द्वितीय अध्यायके पहिले सूत्रद्वारा निरुक्तिपूर्वक लक्षणसे पांच भावोंको कहा गया है। दूसरे सूत्रमें संख्या निरूपण करनेसे पांच भावोंका कथन किया है । तथा द्वितीय अध्यायके तीसरे, चौथे, पांचवें, छठे, सातवें सूत्रमें उन पांचों भावोंका प्रभेद दिखला देनेसे निरूपण किया गया है। तत्र तेषां लक्षणतो निरूपणार्थमिदमाचं सूत्रमुपलक्ष्यते । ___ अब लक्षण, संख्या, और प्रभेद उन तीनों प्ररूपणोंमें प्रथम उन भावोंका लक्षणरूपसे कथन करनेके लिये द्वितीय अध्यायके आदिमें होनेवाला सूत्र श्री उमास्वामी महाराज करके उपलक्षणपूर्वक कहा जाता है। आप शमिकसायिको भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्तमौदयिकपारिणामिकौ च ॥१॥
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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