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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
वे पांच इन्द्रियां फिर जड पुद्गलसे ही निर्मित की गयीं हैं । आत्म परिणामरूप नहीं हैं तथा वे एक प्रकार ही हैं, इस प्रकार हुये किसी वैशेषिक या अन्य तटस्थ पण्डितकी कुचेष्टाका निराकरण कर रहे, सन्ते श्री उमास्वामी आचार्य आहेत सिद्धान्तको अग्रिमसूत्र द्वारा स्पष्ट कहते हैं ।
द्विविधानि ॥ १६॥ वे पांचों भी इन्द्रियां द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय इन भेदोंसे प्रत्येक दो प्रकारवाली हैं।
द्विः प्रकाराणीत्यर्थः प्रकारवाचित्वाद्विधशद्भस्य । शक्तींद्रियाणि व्यक्तींद्रियाणि चेति द्विविधानि केचिन्मन्यते, मूर्तान्यमूर्तानि वेत्यपरे । सूत्रकारास्तु द्रव्येद्रियाणि भावोंद्रियाणि चेति चेतसि निधायैवमाहुः।
विध शब्दके विधान, प्रकार, युक्त, गत ऐसे कई अर्थ होते हैं । किन्तु इस सूत्रमें प्रकार अर्थको कहनेवाले विध शब्दका ग्रहण किया गया है । अतः प्रत्येक इन्द्रयां दो दो प्रकारवाली हैं। यह वाक्यका अर्थ हो जाता है । कोई मीमांसक यों मान रहे हैं कि शक्तिरूप इन्द्रियां और व्यक्तिरूप इन्द्रियां इस ढंगसे इन्द्रियोंके दो प्रकार हैं अथवा दूसरे कोई पण्डित मूर्त इन्द्रियां और अमूर्त इन्द्रियां इस प्रकार इन्द्रियों के दो भेद बखान रहे हैं । कान, आकाशस्वरूप होनेसे अमूर्त हैं शेष चार इन्द्रियां और मन मूर्त हैं, किन्तु यहां तत्त्वार्थसूत्रको बनानेवाले श्री उमास्वामी महाराज तो प्रत्येक इन्द्रियां द्रव्य इन्द्रियस्वरूप और भाव इन्द्रिय स्वरूप हैं, इस प्रकार चित्तमें धारण कर इस " द्विविधानि " सूत्रको कह रहे हैं। अर्थात्-किन्हीं वैशेषिक या अन्य विद्वानोंके मतका हम विरोध नहीं करते हैं। लब्धिरूप शक्ति इन्द्रिय और व्यक्ति रूप उपयोग अथवा शक्तिरूप इन्द्रियावछिन्न आत्मप्रदेश और पौद्गलिक रचनास्वरूप व्यक्त इन्द्रिय हमको भी अभीष्ट हैं । इन्द्रियोंके मूर्त अमूर्त भेदोंका भी हम तिरस्कार नहीं करते हैं । लब्धि, उपयोग, ये भावेन्द्रियां और आत्म प्रदेशरूप निर्वृत्तिको जैन सिद्धान्तमें अमूर्त माना गया है । हां, उन आत्म प्रदेशोंपर रचे गये इन्द्रियाकार पौगलिक परिणामको मूर्त इन्द्रिय इष्ट किया है। किन्तु ये और इनसे न्यारे अन्य भी भेद, प्रभेद, इन्हीं दो द्रव्योन्द्रय और भावेन्द्रिय भेदोंमें गतार्थ हो जाते हैं । सूत्रकारका यह अभिप्राय ध्वनित हो रहा है।
यद्येवं कानि द्रव्येद्रियाणीत्याह ।
कोई प्रश्न करता है कि यदि इस प्रकार द्रव्येंद्रिय और भावेन्द्रिय दो भेद हैं, तो इन्द्रियोंका पहिला भेद द्रव्येन्द्रियां कौन हैं ? बताओ । ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज समाधानकारक सूत्रको कहते हैं।
निर्वृत्त्युपकरणे द्रव्येंद्रियम् ॥ १७ ॥
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