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श्री विर पं. कैलासचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री बनारस
गुरुवर्य पं. माणिकचन्दजीकी अमूल्य कृति श्री लोकवार्तिकलंकारकी हिन्दी टीका इस शती के विद्वद्वर्गके लिए स्पर्धाी वस्तु है । गुरुकी कृतिको आलोचना करना शिष्यका कार्य नहीं होता । वह केवल उसकी अभिवन्दना कर सकता है । अतः मैं भी उसकी अभिवन्दना करता हूं। वह एक ऐसी कृति है, जिससे भावी पीढीका मार्ग प्रशस्त हुआ है । वह सचमुच में लोकवार्तिकालंकार के जिज्ञासुओंके लिये दीपिकाका ही कार्य करेगी ।
इससे इस ग्रंथ की महानता एवं उपयोगिताका दर्शन हमारे पाठकोंको भली भांति होगा । अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं ।
प्रस्तुत खंडका प्रमेय
इससे पहिले प्रकृतग्रंथ के तीन खंड प्रकाशित हो चुके हैं । यह निश्चित है कि तत्वार्थ श्लोकवार्तिकालंकार तत्वार्थसूत्र के सर्व गहन गंभीर तत्वोंका विविध दृष्टिकोण से दर्शन करानेवाला विशाल दर्पण है, तत्वार्थसूत्र के प्रमेयोंका इतना सूक्ष्म और विस्तृत विवेचन करनेवाला आजतक कोई दूसरा ग्रंथ नहीं निकला, यह हम निस्संकोच लिख सकते हैं ।
प्रथम खंड : - प्रकृत ग्रंथके प्रथम खंडमें मोक्षोपायके संबंध में अत्यंत गवेषणाके साथ विचार किया गया है । उक्त विषयका स्पष्टीकरण आबाल वृद्धोंको समझमें आवे, इस ढंगसे अत्यंत विशद रीति से किया गया है। जीवका अंतिम ध्येय मोक्ष है । बंधनबद्ध आत्माको मुक्तिके अलावा और क्या चाहिये | मुक्तिके लिए साघनीभूत सफलमार्गका दर्शन महर्षि विद्यानंदस्वामीने इस प्रकरण में कराया है । रत्नत्रयके बिना मुक्तिश्री वशमें नहीं हो सकती है । रत्नत्रयकी प्राप्तिसे ही मोक्षसाम्राज्यके वैभवको यह आत्मा अमित - अनंत - आनंदके साथ अनुभव कर सकता है, इस तत्वका दर्शन हम आचार्य विद्यानंदी के विवेचन में देखकर गद्गद हो जाते हैं । ६५० पृष्ठोमें केवळ एक प्रथम सूत्रका विवेचन ही आसका है। इसीसे प्रकृत ग्रंथकी महत्ताका ज्ञान हो सकता है। इस खंड में प्रथम अध्यायका प्रथम आन्हिक तक प्रकरण आ गया है ।
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द्वितीयखंड - द्वितीय खंड में पुनश्च ग्रंथकारने सम्यग्दर्शनका स्वरूप, मेद, अधिगमोपाय, तत्वोंका स्त्ररूप और भेद, तत्वज्ञान के साधक निक्षेपादिकों का विवेचन, निर्देशादि पदार्थ विज्ञानोंका विस्तार, और सत्संख्याक्षेत्रादिक तत्वज्ञान के साधनोंपर पर्याप्त प्रकाश डाला है। इस खंड में प्रथम अध्यायका द्वितीय आन्हिकतकका विवेचन आ चुका है । ग्रंथकारने इस प्रकरण में सम्यग्दर्शन के संबंविशद विचारको व्यक्त किया है। इतना ही लिखना पर्याप्त है कि सम्यग्दर्शन के विष
यमें इतना विस्तृत व सुस्पष्ट विवेचन अन्यत्र मिलना असंभव है । इस खंड में केवळ सात सूत्रोंका विवेचन हूँ । प्रथम खंड में ' सम्यग्दर्शनचरित्राणि मोक्ष मार्गः ' इस सूत्र के द्वारा मोक्षमार्गका सामान्य विवेचन कर आचार्य प्रवरने दूसरे खंड में ' तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं ' से लेकर ' सत्संख्या क्षेत्र स्पर्शन