________________
तत्वार्थचिन्तामणिः
दृष्टान्तका ग्रहण करना अभीष्ट किया गया है। किन्तु फिर दृष्टान्तकी प्रसिद्धिके लिये तो अन्य हेतुमोंका उपादान करना आवश्यक नहीं है। क्योंकि प्रायः सभीके यहां प्रसिद्ध रूपसे जान लिये गये स्वभावोंको धारनेवाले अर्थका दृष्टान्तपना माना जा रहा है। उस दृष्टान्तमें भी पुनः अन्य साधनोंका कथन करना निष्फल है । " प्रदीपादानप्रसङ्गनिवृत्तिवत्तद्विनिवृत्तिः " इस सूत्रके माध्यमें उक्त विषयको पुष्ट किया गया है।
तथा प्रतिदृष्टान्तरूपेण प्रत्यवस्थानं प्रतिदृष्टान्तसमा जातिस्तत्रैव साधने प्रयुक्त कचित् प्रतिदृष्टान्तेन प्रत्यवतिष्ठते क्रियाहेतुगुणाश्रयमाकाशं निष्क्रियं दृष्टमिति । का पुनराकाशस्य क्रियाहेतुर्गुणः संयोगो वायुना सह, स च संस्कारापेक्षो दृष्टो यथा पादपे वायुना संयोगः काळनयेप्यसंभवादाकाशे क्रियायाः कथं क्रियाहेतुर्वायुना संयोग इति न शंकनीयं, वायुना संयोगेन वनस्पती क्रियाकारणेन समानधर्मत्वादाकाशे वायुसंयोगस्य, यवसौ तथाभूतः क्रियां न करोति तनाकारणत्वादपि तु प्रतिबंधनान्महापरिमाणेन । यथा मंदवायुनानानंतानां लोष्ठादीनामिति । यदि च क्रिया दृष्टा क्रियाकारणं वायुसंयोग इति मन्यसे तदा सर्व कारणं क्रियानुमेयं भवतः प्राप्तं । ततश्च कस्यचित्कारणस्योपादानं न प्रामोति क्रियाथिनां किमिदं करिष्यति किं वा न करिष्यति संदेहात् । यस्य पुनः क्रियासमर्थत्वादुपादानं कारणस्य युक्तं तस्य सर्वमाभाति ।
तिसी प्रकार साध्यके प्रतिकूलको साधनेवाले दूसरे प्रतिदृष्टान्त करके प्रत्यवस्थान देना प्रतिदृष्टान्तसमा जाति है । जैसे कि वहां ही बनुमानमें आत्माके क्रियावत्वको साधनेमें हेतु प्रयुक्त कर चुकनेपर कोई प्रतिवादी प्रतिकूल दृष्टान्त करके प्रत्यवस्थान उठा रहा है कि क्रिया हेतुगुणका आश्रय हो रहा आकाश तो क्रियारहित देखा गया है । इस प्रत्यवस्थाता प्रतिवादीका तात्पर्य यह है कि क्रियाहेतु गुणका आश्रय हो रहा भी भाकाश जैसे निष्क्रिय है, वैसे ही क्रियाहेतुगुणका आश्रय हो रहा भास्मा भी क्रियारहित बना रहो । यदि यहां कोई प्रतिवादीके ऊपर यो प्रश्न करे कि तुम्हारे माने गये प्रतिकूल दृष्टान्त आकाशमें कोमसा क्रियाका हेतुगुण है ! थोडा बतायो तो, तब प्रतिवादी की ओरसे इसका उत्तर यों दिया जा सकता है कि वायुके साथ आकाशका संयोग हो रहा है। और वह संस्कारको अपेक्षा रखता हुआ क्रियाहेतुगुण देखा गया है। जैसे कि वायुके साथ वृक्षमें हो रहा संयोग नामक गुण उस वृक्षके कम्पनका कारण है । उसी वायुवृक्ष संयोगके समान धर्मवाला वायुआकाश संयोग है। संयोग गुण दोमें रहता है । वृक्षवायुके संयोगने जैसे वृक्षमें क्रिया पैदा कर दी थी, उसीके समान वायु आकाश संयोग मी आकाशमें क्रियाको उत्पन्न करानेकी योग्यता रखता है। यदि यहां कोई छात्र प्रतिवादीके ऊपर पुनः शंका करे कि तीनों कालोंमें भी आकाशमें