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________________ तत्वार्थचिन्तामणिः 1 1 वायु है । तिस ही प्रकार क्रियाहेतुगुणों से सहित हो रहा भी कोई पदार्थ तो क्रियावान् हो जाय यह ठीक है । जैसे कि डेल आदि हैं । क्रियाहेतुगुणसे उपेत होता संता भी कोई पदार्थ क्रियारहित बना रहो । जैसे कि आत्मा है । यह विकल्पसमा जाति हुई। यह विकल्पसमा जाति पहिली वर्ण्यसमा जातियोंसे पृथकू ही है । क्योंकि वहां इस प्रकारका प्रत्यवस्थान देना नहीं पाया जाता है। देखिये, बसमा अवर्ण्यसमा तो इस प्रकारका प्रत्ययस्थान है कि मात्मा क्रियावान्, यो वर्णनीय होता हुआ, यदि साध्य बनाया गया है तो डेल, गोला आदि दृष्टान्त भी साध्य बना लिये जाओ । अब कोष्ठ आदिक तो वर्णनीय नहीं है, तो आत्मा मी अख्यायनीय बना रहो। अथवा आत्मा और डेमें कोई विपरीतपनकी विशेषता होय तो उस विशेषको सबके सन्मुख ( सामने ) कहना चाहिये । किन्तु इस विकल्पसमामें तो क्रियाहेतुगुणों के अधिकरण हो रहे द्रव्योंके भारीपन, हलकापन पन विकल्पोंके समान क्रियासहितपन और क्रियारहितपनका विकल्प हो जाओ। इस प्रकार प्रत्यवस्थान उठाया गया है। इस कारण से यह ( वह ) विकल्पसमा जाति उन वर्ण्यसमासे भिन्न ही है । १७९ का पुनः साध्यसमेत्याह । साध्यसमा जाति फिर क्या है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य महाराज न्याय भाष्यका अनुवाद करते हुए समाधान कहते हैं । हेत्वादिकांगसामर्थ्ययोगी धर्मोवधार्यते । साध्यस्तमेव दृष्टांते प्रसंजयति यो नरः ॥ ३४७ ॥ तस्य साध्यसमा जातिरुद्भाव्या तत्त्ववित्तकैः । यथा लोष्टस्तथा चात्मा यथात्मायं तथा न किम् ॥ ३४८ ॥ लोष्ठः स्यात्सक्रियश्वात्मा साध्यो लोष्ठोपि तादृशः । साध्योस्तु नेति चेल्लोष्ठो यथात्मापि तथा कथं ॥ ३४९ ॥ साध्य में साध्यका अर्थ तो हेतु, पक्ष, आदिक अनुमानांगोंकी सामर्थ्य से युक्त हो रहा धर्म निर्णीत किया जाता है । उस ही साध्यको जो प्रतिवादी मनुष्य दृष्टान्तमें प्रसंग देनेकी प्रेरणा करता है, उस मनुष्य के ऊपर जिनके विद्या ही धन है, अथवा जो प्रकाण्ड तत्ववेत्ता विद्वान् हैं, उन करके साध्यसमा जाति उठानी चाहिये । वह मनुष्य कहता है कि यदि जिस प्रकारका कोष्ठ है, उस प्रकारका आत्मा प्राप्त हो जाता है, तो जैसा आत्मा है वैसा कोष्ठ क्यों नहीं हो जाये ! यदि आत्मा क्रियावान् होता हुआ साध्य हो रहा है, तो डेल मी तिस प्रकारका क्रियावान् साध किया जाभो ।
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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