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________________ तत्वार्थलोकवार्तिके धर्मान्तरके विकल्पसे साध्यधर्मके विकल्पका प्रसंग हो रहे प्रतिवादीके ऊपर तो विद्वानों करके विकल्पसमा जातिका उठाया जाना इष्ट किया गया है। उसका दृष्टान्त यों है कि हेतु गुणोंसे युक्त हो रहा कोई एक पदार्थ तो भारी देखा जाता है। जैसे कि डेल या गोली है। और क्रिया हेतु गुणके बाश्रय कोई कोई पदार्थ गुरु नहीं देखा जाता है। यानी हलका विचार किया जाता है। जैसे कि वायु है। उसीके समान कोई पदार्थ क्रियाहेतुगुणाश्रय होते हुये क्रियावान् हो जायंगे, जैसे कि लोष्ठ बादिक है । और कोई कोई क्रियाहेतुगुणाश्रय होते हुये भी क्रियारहित बने रहेंगे,जैसे कि मात्मा है। यह युक्त प्रतीत होता है। यदि कोई वादीको इसमें विशेषता दीख रही होय और वे मात्माको निष्क्रिय नहीं कहना चाहें तो वे विशेषहेतुका निवेदन करें। अन्यथा उनकी बात नहीं मानी जा सकेगी। भावार्थ-डेढ और वायुका हलके, भारीपनसे द्वैविध्य माननेवाळेको डेल और आत्माका सक्रिय, निष्क्रियपनेसे वैविध्य मानना स्वतः प्राप्त हो जाता है। यहां जैनोंका अभिमत इतना अधिक जान लेना चाहिये कि नैयायिक तो पृथ्वी और जळमें ही गुरुत्वको मानते हैं । किन्तु जैन विद्वान स्कन्धस्वरूप अग्नि और वायुमें भी भारीपन अमीष्ट करते हैं । विज्ञान भी इस विषयका साक्षी है। विकल्पो विशेष साध्यधर्मस्य विकल्पः साध्यधर्मविकल्पस्तं धर्मातरविकल्पात्मसंजयतस्तु विकल्पसमा जातिः तत्रैव साधने प्रयुक्त पर प्रत्यवतिष्ठते। क्रियाहेतुगुणोपेतं किंचिद्गुरु दृश्यते यथा कोष्ठादि किंचित्तु लघु समीक्ष्यते यथा वायुरिति । तथा क्रियाहेतुगुणो. पेतमपि किंचिंक्रियाश्रयं युज्यते यथा लोष्ठादि, किंचित्तु निष्क्रियं यथात्मेति वावर्ण्यसमाभ्यामियं भिन्ना तत्रैवं प्रत्यवस्थानाभावात् वर्ष्यावयॆसमयोःवं प्रत्यवस्थानं, यद्यात्मा क्रियावान् वर्ण्या साध्यस्तदा लोष्ठादिरपि साध्योस्तु । अथ लोष्ठादिरवर्ण्यस्तात्माप्यवर्योस्तु, विशेषो वा वक्तव्य इति । विकल्पसमायां तु क्रियाहेतुगुणाश्रयस्य गुरुलघुविकल्पवत्सक्रियनिष्क्रियत्वैविकल्पोस्त्विति प्रत्यवस्थानं । अतोसौ भिन्ना । उक्त वार्तिकोंमें कही गयी विकल्पसमाका मूल व्याख्यान इस प्रकार न्यायभाष्यमें लिखा है कि विकल्पममा जातिमें पडे हुये विकल्प शब्द का अर्थ विशेष है । साध्यधर्मका जो विकल्प है। वह साध्यधर्मविकल्प कहा जाता है । उस साध्यधर्म विकल्पको अन्य धर्मके विकल्पसे प्रसंग कर प्रत्यवस्थान उठानेवाले प्रतिवादीके तो विकल्पसमा जाति लागू हो जाती है। जैसे कि वहां ही आत्माके क्रियावत्त्वको साधने के लिये हेतुका प्रयोग किये जानेपर दूसरा प्रतिवादी प्रत्यवस्थान देता है कि क्रिया हेतुगुणसे युक्त हो रहा कोई पदार्य तो भारी देखा जाता है। जैसे कि डेल, इञ्जन, बाण, आदिक हैं और क्रियाहेतु गुणों से युक्त हो रहा तो कोई कोई पदार्थ हलका देखा जा रहा है। जैसे कि
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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