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________________ तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके विशेष इत्यनुवर्तते । किमर्थमिदमुच्यते इत्याह । ऊपरके " विशुद्धयप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः " इस सूत्रमेंसे विशेष इस शब्दकी अनुवृत्ति कर ली जाती है। श्री उमास्वामी महाराजकरके यह सूत्र किस प्रयोजनको साधनेके लिये कहा जा रहा है ! इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य समाधान कहते हैं। कुतोऽवधेविशेषः स्यान्मनःपर्ययसंविदः । इत्याख्यातुं विशुद्धयादिसूत्रमाह यथागमं ॥१॥ मनःपर्ययज्ञानका अवधिज्ञानसे अथवा अवधिज्ञानका मनःपर्ययज्ञानसे विशेष किन किन विशेषकोंसे हो सकेगा ! इस बातको बखानने के लिये सूत्रकार " विशुद्धिक्षेत्रस्वामि" आदि सूत्रको आर्ष आगमका अतिक्रमण नहीं कर स्पष्ट कह रहे हैं। विशुद्धिरुक्ता क्षेत्र परिच्छेद्यायधिकरणं स्वामीश्वरो विषय! परिच्छेद्यस्तैर्विशेषो. ऽवधिमनःपर्ययोर्विशेषः। " विशुद्धयप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः " इसमें विशुद्धिका लक्षण कह दिया गया है। जानने योग्य अथवा छन्मस्थोंके अवक्तव्य, अज्ञेय आदि पदार्थोके अधिकरणको क्षेत्र कहते हैं। अधिकारी प्रभु स्वामी कहा जाता है । ज्ञानद्वारा जानने योग्य पदार्थ विषय है। यों उन विशुद्धि आदिकों करके अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान इनका परस्परमें विशेष है। कथमित्याह । वह दोनोंका विशेष किस प्रकार है ! ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द भाचार्य षार्तिकोंद्वारा विवेचन करते हैं। भूयः सूक्ष्मार्थपर्यायविन्मनःपर्ययोऽवधेः । प्रभूतद्रव्यविषयादपि शुद्धया विशेष्यते ॥२॥ बहुतसे द्रव्योंको विषय करनेवाले भी अवधिज्ञानसे बहुतसी सूक्ष्म अर्थपर्यायोंको जाननेवाला मनःपर्ययज्ञान विशुद्धि करके विशेषित कर दिया जाता है । अर्थात्-अवधिज्ञान भले ही बहुतसे द्रव्योंको जान ले. किन्तु द्रव्यकी सूक्ष्म अर्थपर्यायोंको मनःपर्ययज्ञान अधिक जानता है । अवधिज्ञानसे जाने हुये रूपीद्रव्यके अनन्तवें भागको मनःपर्यय जान लेता है । जैसे कि कोई चंचुप्रवेशी विद्वान् थोडा थोडा न्याय, व्याकरण, धर्मशास्त्र, कोष, काव्य, साहित्य, उपदेशकला, लेखनकला, वैधक, ज्योतिष आदिको जान लेता है। किन्तु कोई प्रौढ विद्वान् व्याकरण, न्याय आदिमें से किसी एक ही
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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