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________________ तत्वार्थ-कोकवार्तिके कपर आचार्य कहते हैं कि वह नैयायिकों द्वारा माना गया विक्षेप नामक निग्रहस्थान समीचीन नहीं है । इस बातको स्वयं ग्रन्थकार वार्त्तिकोंद्वास अनुवाद कर स्पष्ट कहे देते हैं । 1 ४२२ सभां प्राप्तस्य तस्य स्यात्कार्यव्यासंगतः कथा । विच्छेदस्तस्य निर्दिष्टो विक्षेपो नाम निग्रहः ॥ २६४ ॥ सोपि नाप्रतिभातोस्ति भिन्नः कश्चन पूर्ववत् । तदेवं भेदतः सूत्रं नाक्षपादस्य कीर्तिकृत् ॥ २६५ ॥ शास्त्रार्थ करनेके लिये सभाको प्राप्त हो चुके वादीका कार्यमें व्याक्षेप हो जानेसे जो कथाका विच्छेद कर देना है, वह उसका विक्षेप नामक निग्रहस्थान हुआ कह दिया जायगा । यहां आचार्य महाराज विचार करते हैं कि वह विक्षेप भी पूर्व कहे गये मतानुज्ञा, निरनुयोज्यानुयोग, आदि निग्रहस्थानोंके समान अप्रतिमा या अज्ञान निग्रहस्थान से कोई भिन्न निग्रहस्थान नहीं है । तिस कारण इस प्रकार भिन्न भिन्न रूपसे निग्रहस्थानों के लक्षण सूत्र बनाना अक्षपाद ( गौतम ) की कीर्तिको करनेवाला नहीं है । गम्भीर और स्वल्प शब्दों में तत्वोंको प्रतिपादन करनेवाले सूत्रोंका निर्णय करनेसे दार्शनिक उपज्ञ विद्वान्का यश बढता है । निस्तत्त्व वाग् आडम्बर से यशः कीर्तन नहीं हो पाता है । यदप्युक्तं सिद्धांतमभ्युपेत्यानियमात्कथाप्रसंगोपसिद्धान्तः प्रतिज्ञातार्थव्यतिरेकेणाभ्युपेतार्थपरित्यागान्निग्रहस्थानमिति, तदपि विचारयति । स्वकीय सिद्धान्तको स्वीकार कर प्रतिज्ञातार्थ के विपर्यय रूप अनियमसे कथाका प्रसंग उठाना अपसिद्धान्त निग्रहस्थान है । यह गौतम सूत्रमें लिखा है प्रतिज्ञा किये जा चुके अर्थकी विभिन्नता करके स्वीकृत किये गये अर्थका परित्याग हो जाने ( कर देने ) से यह निग्रहस्थान माना गया है । स्वीकृत आगमके विरुद्ध अर्थका साधन करने लग जाना अपसिद्धान्त है । उस निग्रहस्थानका भी आचार्य महाराज विचार चढाते हैं । कथा स्वयं नियत सिद्धांतो नियमेन विना यदा । प्रसंजयेत्तस्यापसिद्धांत्तस्तथोदितः ॥ २६६ ॥ सोप्ययुक्तः स्वपक्षस्यासाधनेनेन तत्त्वतः । असाधनांगवचनाद्दोषोद्भावनमात्रवत् ॥ २६७ ॥ जिस समय वादी अपने सिद्धान्तको स्वयं नियत कर चुका है, पुनः उस नियतिका लक्ष्य रक्खे विना यदि वाद कथाका प्रसंग लावेगा तिस प्रकार होनेपर उसके अपसिद्धान्त नामका निग्रह
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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