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तत्त्वार्याचन्तामणिः
__ यहां कोई शंका करता है कि सभी निग्रहस्थानोंको केवल अज्ञानमें ही गर्मित करनेपर भी तो अतिप्रसंग हो जाता है। क्योंकि सब जीवोंके सभी ज्ञानोंकी सदृशताओंका असम्भव है। अतः भेद प्रभेद करनेपर ही सन्तोष हो सकेगा। अब आचार्य कहते हैं कि यह तुम्हारा कहना सत्य है। किन्तु विशेषता यह है कि अमिप्रेत हो रहे साध्य वस्तुको सिद्धि करने के लिये प्रयोग किये जा रहे ज्ञानका यदि अभाव नहीं है तो ऐसी दशामें अपने अभीष्ट अर्थके साधन करनेपर ही दूसरे सन्मुख स्थित पण्डितका दोष कहा जायगा । और तभी स्वपक्षको साधकर अन्य वक्ताका निग्रह करता हुआ वह जीतनेवाला कहा जायगा। संक्षेपसे यह सिद्धान्त निर्दोष होनेके कारण व्यवस्थित हो चुका है कि अपने पक्षकी प्रमाणोंद्वारा समीचीन सिद्धि करके ही दूसरा पुरुष निग्रह कराने योग्य है। अन्यथा यानी अपने पक्षको साघे विना दूसरेको उस निग्रहप्राप्तिका अयोग है।
तस्करोयं नरत्वादेरिति हेतुर्यदोच्यते । तदानैकांतिकत्वोक्तित्वमपीति न वार्यते ॥ २५९ ॥ वाचोयुक्तिप्रकाराणां लोके वैचित्र्यदर्शनात् । नोपालंभस्तथोक्तौ स्याद्विपक्षे हेतुदर्शनम् ॥ २६०॥ दोषहेतुमभिगम्य स्वपक्षे परपक्षताम् । दोषमुद्भाव्य पश्चात्त्वे स्वपक्षं साधयेजयी ॥ २६१ ॥
यह ( पक्ष ) चोटा है ( साध्य ), मनुष्यपना होनेसे, भोजन करनेवाला होनेसे, वक्ता होनेसे,इत्यादिक हेतुओंसे तस्करपना सिद्ध किया और प्रसिद्ध चोरको दृष्टान्त बनाया गया, इस प्रकार वादीके कहनेपर यदि प्रतिवादी जब यों कह दे कि तब तो हेतुओंके घटित हो जानेसे तू वादी भी पक्का चोट्टा हो गया, ऐसी दशामें नैयायिक प्रतिवादीके ऊपर वादी द्वारा मतानुज्ञा निग्रहस्थानका उठाया जाना वादीका कर्तव्य समझते हैं । किन्तु वस्तुतः विचारा जाय तो यह वादीके हेतुका अनैकान्तिक दोष है । " उल्टा चोर राजाको दंडै " यहां यह परिभाषा. चरितार्थ हो जाती है। अथवा जो वादी दूसरे प्रतिवादी करके आसेपे गये दोषका अपने पक्षमें उद्धार नहीं कर कह देता है कि आपके पक्षमें भी यही दोष समानरूपसे लागू होता है । इस प्रकार अपने पक्षमें दोष स्वीकार कर लेनेसे परकीय पक्षमें दोषका सम्बन्ध करा रहा मतानुज्ञाको प्राप्त हो जाता है। यह तस्कर है, पुरुष होनेसे प्रसिद्ध डाकूके समान " यों कह चुकनेपर तू भी तस्कर है। इस प्रकार हेतुका व्यभिचार दोष ही कहा गया । वह अपने हेतुका स्वयं अपने ही व्यभिचारको देखकर झट कह देता है कि तुम्हारे पक्षमें भी यह दोष समान है । तू भी पुरुष है, इस प्रकार व्यभिचार