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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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पराजित हो जानेपर पुनः हेत्वन्तर भी नहीं उठाया जाओ । क्योंकि उस हेत्वन्तरका उन दृष्टान्तान्तर आदिकोंसे कोई विशेष नहीं है । दूसरी बात यह है कि दोषके उत्थान कर चुकने पर कोई कोई वादी हेतुके विशेषणको व्यक्त कह देवेगा, उसी प्रकार दृष्टान्त आदिके दोष उठाने की इच्छासे दृष्टांत आदिके विशेषणोंको भी प्रकट कह देगा । अतः दृष्टान्तान्तर आदि भी तुमको न्यारे निग्रहस्थान मानने पडेंगे ।
अविशेषोक्तो हेतौ प्रतिषिद्धे विशेषमिच्छतो हेत्वंतरमिति सूत्रकारवचनात् द्वित्ववनिग्रहस्थानं साधनांतरोपादाने पूर्वस्यासामर्थ्यख्यापनात् । सामर्थ्य वा पूर्वस्य हेत्वंतरं व्यर्थमित्युद्योतकरो व्याचक्षाणो गतानुगतिकतामात्मसात्कुरुते प्रकारांतरेणापि हेत्वंतरवचनदर्शनात् । तथा अविशेषोक्ते दृष्टांतोपनयनिगमने प्रतिषिद्धे विशेषमिच्छतो दृष्टांताचंतरोपादाने पूर्वस्यासामर्थ्यख्यापनात् । सामर्थ्य वा पूर्वस्य प्रतिदृष्टांतायंतरं व्यर्थमिति वक्तुं शक्यत्वात् । अत्राक्षेपसमाधानानां समानत्वात् ।
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विशेषका लक्ष्य नहीं रख सामान्य रूपसे हेतुके कह चुकनेपर पुनः प्रतिवादी द्वारा हेतुके प्रतिषिद्ध हो जानेपर विशेष अंशको विवक्षित कर रहे वादीका हेत्वन्तर निग्रहस्थान जाता है । इस प्रकार न्यायसूत्र कार गौतम ऋषिका वचन है। यहां उसी हेतुमें अन्य विशेषणका प्रक्षेप कर देने से अथवा अन्य नवीन हेतुका प्रयोग करदेनेसे दोनों भी हेत्वंतर निग्रहस्थान कक्षे जाते हैं । उद्योतकर पण्डितका यह अभिप्राय है कि अन्य साधनका ग्रहण करनेपर वादीके पूर्व हेतुकी असामर्थ्य प्रकट हो जाती है । अतः वादीका निग्रह हो जाता है । यदि वादीका पूर्वकथित हेतु समर्थ होता तो वादीका अम्य ज्ञापक हेतु उठाना व्यर्थ है । आचार्य कहते हैं कि वादीका यदि पहला हेतु अपने साध्यको साधने में समर्थ था तो वादीने दूसरा हेतु व्यर्थमें क्यों पकडा ? इस प्रकार व्याख्यान कर रहा उद्योतकर तो गतानुगतिकपनेको अपने अधीन कर रहा है । अर्थात्बापका कुआं समझकर दिन रात उसी कुएका खारा पानी पीते रहना अथवा छोटा डुबकानेके लिये एक रेतकी ढेरी बनानेपर सैकडों मूढ गंगा यात्रियों द्वारा धर्मान्ध होकर अनेक ढेरी बना देना जैसे विचार नहीं कर कोरा गमन करनेवाले के पीछे गमन करना है, उसी प्रकार अक्षपादके कहे अनुसार भाष्यकारने वैसाका वैसा कह दिया और उद्योतकरने भी वैसा ही आलाप गा दिया, परीक्षा प्रधानियोंको युक्तियोंके विना यों ही अन्धश्रद्धा करते हुये तत्त्वनिरूपण करना अनुचित है । क्योंकि अन्य प्रकारोंकरके मी हेत्वन्तरका वचन देखा जाता है । तिसी प्रकार ( हेत्वन्तर के समान ) वादी द्वारा अविशेषरूप से दृष्टान्त, उपनय और निगमनके कथन करनेपर प्रतिवादी द्वारा उनका प्रतिषेध किया जा चुका । पुनः दृष्टान्त आदिमें विशेषणोंकी इच्छा रखनेवाले वादीके द्वारा अन्य दृष्टान्त, दूसरे उपनय आदिका प्रण करनेपर पूर्वके दृष्टान्त आदिकोंकी असामर्थ्यको प्रकट करदेने से