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________________ तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिके तिस कारणसे सिद्ध हो जाता है कि प्रतिवादीके स्वपक्षकी सिद्धि हो चुकने पर यदि पक्षसिद्धिके अविनाभावी साधनोंका अकथन वादी द्वारा किया जायगा तो वादीका निग्रह बना बनाया है। कोई ढील नहीं है । ३३२ सामर्थ्यात् प्रतिवादिनः सद्दृषणानुद्भावनं निग्रहाधिकरणं वादिनः पक्षसिद्धौ सत्यामित्यवगंतव्यं । विना कहे ही इस वार्तिककी सामर्थ्य से यह तत्त्व भी समझ लेना चाहिये कि श्रेष्ठ दूषण नहीं उठाना, प्रतिवादीका निग्रहस्थान है । किन्तु वादीके पक्षकी सिद्धि हो चुकनेपर यह नियम लागू होगा अन्यथा नहीं । यह भली भांति समझ लेना चाहिये । तथा वादिनं साधनमात्रं ब्रुवाणमपि प्रतिवादी कथं जयतीत्याह । केवल साधनको ही कह रहे वादीको भी मला प्रतिवादी कैसे जीत लेता है ? इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर आचार्य महाराज समाधान कहते हैं । विरुद्धसाधनोद्भावी प्रतिवादीतरं जयेत् । तथा स्वपक्षसंसिद्धेर्विधानं तेन तत्त्वतः ॥ ७० ॥ हेतुओं द्वारा अपने पक्षकी सिद्धिको कह रहे वादीके हेतुमें विरुद्धहेत्वाभास दोषको उठानेCar प्रतिवादी नीचे हो रहे दूसरे वादीको तिस प्रकार स्वपक्षकी मळे प्रकार सिद्धि करनेसे जीत ढेगा । तिस कारण वास्तविक रूपसे स्वपक्ष सिद्धिका विधान करना अत्यावश्यक है । दूषणांतरमुद्भाव्य स्वपक्षं साधयन् स्वयं । जयत्येवान्यथा तस्य न जयो न पराजयः ॥ ७१ ॥ अन्य दूषणोंको उठाकर प्रतिवादी अपने पक्षकी सिद्धिको स्वयं करता हुआ ही वादीको जीतता है । अन्यथा यानी स्वपक्षकी सिद्धि नहीं करनेपर तो उस प्रतिवादीकी न जीत होगी और न पराजय होगा यह नियम समझो । यच धर्मकीर्तिनाभ्यधायि साधनं सिद्धिस्तदंगं त्रिरूपं लिंगं तस्यावचनं वादिनो निग्रहस्थानं । तथा साधनस्य त्रिरूपलिंगस्याङ्गं समर्थनं व्यतिरेकनिश्चयनिरूपणात्, तस्य विपक्षे वाधकप्रमाणवचनस्य हेतोः समर्थनत्वात् तस्यावचनं वादिनो निग्रहस्थानमिति च नैयायिकस्यापि समानमित्याह ।
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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