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________________ तत्वार्थचिन्तामणिः संग्रहाद्यवहारोपि सद्विशेषावबोधकः । न भूमविषयोशेषसत्समूहोपदर्शिनः ॥ ८५॥ संग्रह नयसे व्यवहारनय भी अल्पविषयवाला है। क्योंकि पूर्ववर्ती संग्रहनय तो सभी सत् पदार्थोको विषय करता है । और यह व्यवहारनय तो सत् पदार्थों के विषय हो रहे अल्प पदायोका बापक है । अतः सम्पूर्ण सत पदार्थोके समुदायको दिखलाने वाले संग्रह मयसे व्यवहारनय अधिक विषयग्राही नहीं है। व्यवहाराहजुसूत्रो बहुविषय इति विपर्यासं निरस्यति । व्यवहारनय की ओक्षा ऋजुसूत्र नय बहुत पदार्थोको विषय करता है, इस प्रकार हो रहे किसीके विपर्यय ज्ञानका श्री विद्यानन्द स्वामी निराकरण करते हैं। नर्जुसूत्रः प्रभूतार्थो वर्तमानार्थगोचरः । कालात्रितयवृत्त्यर्थगोचराद्यवहारतः ॥८६॥ भूत, भविष्यत, वर्तमान तीनों कालमें वर्त रहे अर्थोको विषय करनेवाले व्यवहार नयसे केवल वर्तमान कालके अर्थोको विषय कर रहा ऋजुसूत्र नय तो बहु विषयज्ञ नहीं है। अर्थाब-व्यवहारनय तीनों काल के पदार्थोको विषय करता है । और ऋजुसूत्र नय केवल वर्तमान कालकी पर्यायको विषय करता है । अतः अल्प विषय है । और व्यवहारका कार्य है। ऋजुसूत्राच्छवो बहुविषय इत्याशंकामपसारयति । किसी की शंका है कि ऋजुसूत्र मयसे शद्वनयका विषय बहुत है। श्री विद्यानन्द स्वामी इस आशंकाको निकालकर फेंकें देते हैं । सुनिये । कालादिभेदतोप्यर्थमभिन्नमुपगच्छतः। नर्जुसूत्रान्महार्थोत्र शद्वस्तद्विपरीतवित् ॥ ८७ ॥ काल, कारक आदिका भेद होते संते फिर भी अभिन ही अर्थको अभिप्रेत कर रहे ऋजुसूत्र नयसे शब्दनथ उससे विपरीत यानी कालादिके मेदसे भिन्न हो रहे अर्थोको जान रहा है। अर्थात्-ऋजुसूत्र नय तो काल आदिसे भिन्न हो रहे मी अनेक अर्थोको अभिन्न करता हुआ जान लेता है। और शब्दमय तो काल आदिसे भिन्न हो रहे एक एक अर्थको ही जान पायेगा। . शब्दात्समभिरूढो महाविषय इत्यारेका हंति । शब्दसे सममिरूढ नय, अत्यधिक विषयोको नानता है । इस प्रकारकी आशंकाको श्री विद्यानन्द आचार्य वार्तिक द्वारा हटाये देते हैं ।
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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