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________________ २१४ तत्वार्थलोकवार्तिके न्यक्तियां द्रव्य और पर्यायस्वरूप ही हैं। ये अभिप्राय भी सभी प्रमाणोंसे बाधे गये होनेके कारण ही अपरसंग्रहके आभास समझलेने चाहिये । क्योंकि प्रतीतियोंसे नहीं विरूद्ध हो रहे ही पदार्थीको विशेष करनेवाले नयोंको अपरसंग्रह नयके प्रपंच (कौटुम्बिकविस्तार ) की व्यवस्था की जा चुकी है। व्यवहारनयं प्ररूपपति। संग्रहनयका वर्णन कर श्री विद्यानन्द स्वामी अब क्रमप्राप्त व्यवहार नयका प्ररूपण करते हैं। संग्रहेण गृहीतानामर्थानां विधिपूर्वकः । योवहारो विभागः स्याद्यवहारो नयः स्मृतः ॥५०॥ सचानेकप्रकारः स्यादत्तरः परसंग्रहात् । यत्सत्तद्रव्यपयोयाविति प्रागृजुसूत्रतः॥ ५९॥ संग्रह नय करके ग्रहण किये जा चुके पदार्थोका विधिपूर्वक जो अवहार यानी विभाग होगा वह पूर्व आचार्योकी आम्नाय अनुसार व्यवहारनय माना गया है। अर्थात्-विभाग करनेवाला व्यवहारनय है । और वह व्यवहारनय तो परसंग्रहसे उत्तरवर्ती होकर ऋजुसूत्र नयसे पहिले वर्तता हुआ अनेक प्रकारका है । परसंग्रहनयने सत्को विषय किया था। जो सत् है वह द्रव्य और पर्याय रूप है । इस प्रकार विभाग कर जाननेवाला व्यवहारनय है । यद्यपि अपरसंग्रहने भी द्रव्य और पर्यायोंको जान लिया है, किन्तु अपरसंग्रहने सत्का भेद करते हुये उन द्रव्यपर्यायोंको नहीं जाना है। पहिलेसे ही विभागको नहीं करते हुये युगपत् सम्पूर्ण द्रव्योंको जान लिया है। अथवा दूसरे अपरसंग्रहने झटिति सम्पूर्ण पर्यायोंको विषय कर लिया है । किन्तु व्यवहारने विभागको करते हुऐ जाना है । व्यवहारके उपयोगी हो रहे भले ही महासामान्यके भी भेदोंको जाने,वह न्यबहार नय है। कल्पनारोपितद्रव्यपर्यायप्रविभागभाक् । प्रमाणाधितोन्यस्तु तदाभासोऽवसीयताम् ॥६०॥ द्रव्य और पर्यायोंके आगेपित किये गये कल्पित विभागोंको जो नय कदाग्रहपूर्वक धार लेता है वह तो प्रमाणोंसे बाधित होता हुआ इस व्यवहारनयसे न्यारा व्यवहार नयाभास जानना चाहिये । क्योंकि द्रव्य और पर्यायोंका विभाग कल्पित नहीं है। परसंग्रहस्तावत्सर्वं सदिति संगृह्णाति, व्यवहारस्तु तद्विभागमभिप्रैति यत्सत्चद्व्यं पर्याय इति । यथैवापरसंग्रहः सर्वद्रव्याणि द्रव्यमिति संगृह्णाति सर्वपर्यायाः पर्याय इति ।
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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