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________________ २३४ तत्वार्थ शोकवार्तिके नैगम, और द्रव्यपर्यायनैगम, इस प्रकार नैगमके तीन भेद तथा संग्रह आदिक छह भेद इस ढंगसे नय नौ प्रकारका अन्य ग्रन्थोंमें कहा गया है । इसमें हमको कोई विरोध नहीं है । तात्पर्य एक ही बैठ जाता है। तत्र पर्यायगस्त्रेधा नैगमो द्रव्यगो द्विधा । द्रव्यपर्यायगः प्रोक्तश्चतुर्भेदो ध्रुवं ध्रुवैः ॥२७॥ तिन नैगमके भेदोंमें पर्यायोंको प्राप्त हो रहा नैगम तो तीन प्रकारका है और दूसरा द्रव्यको प्राप्त हो रहा नैगम दो प्रभेदवाला है । तथा द्रव्य और पर्यायको विषय करनेवाला तीसग नैगम तो ध्रुवज्ञानी पुरुषोंकरके निश्चितरूपसे चार भेदवाळा ठीक कहा गया है । अर्थात्-पर्यायनैगमके अर्थपर्याय नैगम १ व्यंजनपर्यायनैगम २ अर्थव्यंजनपर्यायनैगम ३ ये तीन प्रभेद हैं । और दूसरे द्रव्यनैगमके शुद्धद्रव्यनैगम, अशुद्धद्रव्यनैगम ये दो प्रभेद हैं । तथा तीसरे द्रव्यपर्याय नैगमके शुद्ध द्रव्यपर्याय नैगम १ शुद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगम २ अशुद्धद्रव्यपर्यायनैगम ३ अशुद्धद्रव्यव्यंजनपर्यायनैगम ४ ये चार प्रकार हैं । इस प्रकार नैगमके नौ और संग्रह भादिक छह यों नयोंके पन्द्रह भेद हो जाते हैं। अर्थपर्याययोस्तावद्गणमुख्यस्वभावतः । कचिद्वस्तुन्यभिप्रायः प्रतिपत्तुः प्रजायते ॥२८॥ यंथा प्रतिक्षणं ध्वंसि सुखसंविच्छरीरिणः । इति सत्तार्थपर्यायो विशेषणतया गुणः ॥ २९ ॥ संवेदनार्थपर्यायो विशेष्यत्वेन मुख्यताम् । प्रतिगच्छन्नभिप्रेतो नान्यथैवं वचोगतिः ॥३०॥ उनमेंसे नैगमके पहिले प्रभेदका उदाहरण यों हैं कि किसी एक वस्तुमें दो अर्थपर्यायोंको गौण मुख्यस्वरूपसे जानने के लिये नयज्ञानी प्रतिपत्ताका अच्छ। अभिप्राय उत्पन्न हो जाता है। जैसे कि शरीरधारी आत्माका सुखसम्वेदन प्रतिक्षण नाशको प्राप्त हो रहा है । यहाँ उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, युक्त सत्तारूप अर्थपर्याय तो विशेषण हो जानेसे गौण है । और सम्वेदनस्वरूप अर्थपर्याय तो विशेष्यपना होनेके कारण मुख्यताको प्राप्त हो रही संती अभिप्रायमें प्राप्त की गयी है। अन्यथा यानी दूसरे ढंगोंसे इस प्रकार कथनद्वारा ज्ञप्ति नहीं हो सकेगी । भावार्थ-" आत्मनः सुखसम्वेदनं क्षणिकं " यहां आत्माका सुखसम्वेदन क्षणक्षणमें उपजरहा नष्ट हो रहा है, यह नैगमनयने
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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