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तत्वार्थचिन्तामणिः
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करनेसे सामान्य संख्या एकका बोध हो जाता है और " नयों " के साथ अन्वय कर देनेसे संक्षेपसे दो भेदवाले नय हो जाते हैं । तथा " नयाः " के साथ एकार्थ कर देनेसे विस्तार और प्रति विस्तारसे नयोंके भेद जान लिये जाते हैं । इस प्रकार गंभीर सूत्रद्वारा ही चारों ओरसे सम्पूर्ण संख्याओंकी सूचना कर दी जाती है । सदृश अर्थको रखते हुये समानरूपवाले पदोंका एक विभक्ति में एक ही रूप अवशिष्ट रह जाता है । घटश्व, घटश्व, घटश्व, कहने से एक घट शब्द शेष रह जायगा । अन्योंका लोप हो जायगा । ' यः शिष्यते स लुप्यमानार्थविधायी' और लोप किये जा चुके शब्दों के अर्थको वह बचा हुआ पद-कहता रहेगा । इस प्रकार एकशेष वृत्ति है । इसका पक्ष उतना प्रशस्त नहीं है जितना कि स्वाभाविक पक्ष उत्तम है । यानी तिस स्वभावसे हो ।" "" वह शब्द अनेक अर्थोको कह देता है । अथवा घटाः एक नय, दो नय, बहुत नय इन अर्थोको स्वभावसे ही प्रतिपादन करता रहता है । जैन सिद्धान्त अनुसार दोनों पक्ष अभीष्ट है ।
प्रकार शब्द शक्तिके
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नयाः यह शब्द
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नैगम संग्रहन्यवहार र्जुसूत्र शब्दसमभिरूदैवंभूता नयाः इत्यत्र नय इत्येकं वाक्यं, ते नौ द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिको इति द्वितीयमेते नयाः सप्तेति तृतीयं पुनरपि ते नयाः संख्याता शद्वत इति चतुर्थे । संक्षेपपरायां वाक्मवृत्तौ यौगपद्याश्रयणात् । नयश्च नयौ च नयाश्च नया इत्येकशेषस्य स्वाभाविकस्याभिधाने दर्शनात् । केषांचित्तथा वचनोपलंभाच्च न विरुध्यते ।
नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शद्व, समभिरूढ, एवंभूत, सात नय हैं । इस प्रकार एक वचन लगाकर एक वाक्य तो यों है कि नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शङ्ख, समभिरूढ, एवंभूत, ये सातों एकनयस्वरूप हैं । और दूसरा वाक्य नयौ लगाकर यों है कि नैगम आदि सातों नय दो नयस्वरूप हैं। तथा ये सातों बहुत नयों स्वरूप हैं। यह तीसरा वाक्य है । फिर भी शदोंकी अपेक्षासे वे नैगम आदिक लाखों, करोडों आदि संख्यावाली संख्यातीं नये हैं । यह चौथा वाक्य भी सूत्रका है । सूत्रकार महाराज के वचनोंकी प्रवृत्ति संक्षेपसे कथन करनेमें तत्पर हो रही है । अतः युगपत् चारों वाक्योंके कथन करनेका आश्रय कर लेनेसे चार वाक्योंके स्थानपर एक ही सूत्रवाक्य रच दिया गया है । चार वाक्योंके बदले में एक वाक्य बनाना व्याकरण शास्त्र के प्रतिकूल नहीं है । किन्तु अनुकूल है । एक नय, दो नय और बहुत नय इस प्रकार द्वन्द्व समास करनेपर " नयाः यह एक पद बन जाता है । अनेक समान अर्थक पदोंके होनेपर शद्ब स्वभावसे ही प्राप्त हुये एक शेषका कथन करना शद्बों में देखा जाता है । तथा किन्हीं विद्वानोंके मत अनुसार एक नय, दो नय, बहुत नय, इस प्रकार अर्थकी विवक्षा होनेपर तिस प्रकार "" नयाः " ऐसे पहिले से ही बने बनाये कथनका उच्चारण दीख रहा है। अतः कोई विरोध नहीं आता है । परिपूर्ण 1 चन्द्रमाकी कृष्ण पक्ष द्वितीया आदि तिथियों में एक एक कळा राहु विमान द्वारा ढक जाती है। इस
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