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तत्वार्थ लोकवार्तिके
सम्पादित किया जाय । आचार्य कहते हैं कि यह भी विधिवादियोंको नहीं मानना चाहिये । क्योंकि यों तो विधिके सम्पादन करने का भी विरोध हो जावेगा । आप विधिवादियोंके यहां उस विधिको मी अनादिकाल से परिपूर्ण सिद्ध हो रहे वैदिक उपनिषद वाक्योंका धर्मपना माना गया है। 1 विधि और नियोग में नित्य शब्दों का धर्मपना अन्तररहित है । यदि सर्व अंशों में परिपूर्णरूप से अच्छा सिद्ध हो चुके पदार्थका भी संपादन करना माना जावेगा तो पुनः सिद्ध हो चुकेका पुनः संपादन किया जावेगा और फिर उस सिद्ध हो चुकेका भी अमुष्ठान किया जावेगा। इस प्रकार प्रवृत्तियां करते करते कभी विश्राम नहीं मिलेगा । इस कारण स्मृतिके समान अपूर्व अर्थका ग्राहीपना नहीं होनेसे आत्मप्रतिपादक वैदिक उपनिषद् के वचनोंको भला प्रमाणता कैसे आ सकती है ? यहां स्मृतिका दृष्टान्त आचार्य महाराजने नियोगवादीकी अपेक्षासे दे दिया है । स्याद्वाद सिद्धान्तमें अपूर्व अर्थकी प्राहिका होनेसे स्मृति प्रमाण मानी गयी है । यदि फिर भी विधिवादी गृहीतके ग्राहक उन उपनिषद् वचनोंको प्रमाण मानेंगे तो नियोगवाक्य भी प्रमाण हो जाओ । नियोगकी अपेक्षा विधिमें विशेषता करनेवाले कोई लाल नहीं जडे हुये हैं । पक्षपातरहित सद्विचारसे काम लीजिये ।
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स्यान्मतं, नियोगस्य सर्वपक्षेषु विचार्यमाणस्यायोगात्तद्वचनमप्रमाणं । तेषां हि न तावत्कार्य शुद्धं नियोगः प्रेरणानियोज्य वर्जितस्य नियोगस्यासंभवात् । तस्मिन् नियोगसंज्ञाकरणे स्वकं बलस्य कुर्दालिकेति नामांतरकरणमात्रं स्यात् । न च तावता स्वेष्टसिद्धिः । नियोगवादीके पीछे पडे हुये विधिवादियोंका सम्भवतः यो मन्तव्य होवें कि यदि नियोगका शुद्धकार्य आदि सभी ग्यारह पक्षोंमें विचार चलाया जायगा तो उस नियोगकी सिद्धि नहीं हो सकेगी । अतः नियोगको कहनेवाले उपनिषद वाक्य प्रमाण नहीं है। देखिये, सबसे पहिला उन नियोगवादियोंका शुद्धकार्य स्वरूप नियोग तो सिद्ध नहीं हो पाता है। क्योंकि " यजेत " यहां पडी हुई विधिलिङ्का अर्थ माने गये प्रवर्तकत्वरूप प्रेरणा और स्वर्गकी अभिलाषा रखनेवाला नियोज्य श्रोतासे वर्जित हो रहे नियोगका असम्भव है। फिर भी ऐसे उस शुद्धकार्यमें " नियोग " ऐसी वाचक संज्ञा कर ली जावेगी तब तो यह अपने कंवलका " कुदारी " यह केवल दूसरा नाम स्वगृह में कर लेना समझा जायगा । किन्तु तितनेसे तुम्हारे इष्टकी सिद्धि नहीं हो सकती है । अर्थात् - प्रेरणा और नियोज्य पुरुषसे रहित हो रहे केवल शुद्धकार्यस्वरूप नियोगसे स्वर्ग उसी प्रकार नहीं मिल सकता है। जैसे कि कंबलको कुदारी मानकर उस कंबल से सडकका खोदना नहीं हो सकता है । अपने घर में मन माने धर लिये गये साधारण पदार्थोंके नाम लोकव्यवहार के उपयोगी नहीं हैं ।
शुद्धा प्रेरणा नियोग इत्यप्यनेनापास्तं, नियोज्यफलरहितायाः प्रेरणायाः प्रलापमात्रस्वात् । प्रेरणासहितं कार्ये नियोग इत्यप्यसंभवि, नियोज्याद्यसंभवे तद्विरोधात् । कार्यसहिता प्रेरणा नियोग इत्यप्यनेन निरस्तं ।