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तत्वार्यश्लोकवार्तिके
शब्दव्यापाररूपो वा व्यापारः पुरुषस्य वा । द्वयव्यापाररूपो वा द्वयाव्यापार एव वा ॥११४॥
प्रभाकरों के प्रति भट्ट मत अनुयायी पूंछते हैं कि तुम्हारा माना हुषा वह नियोग क्या प्रमाणरूप होगा ! या प्रमेयस्वरूप होगा ! अथवा क्या फिर दोनों प्रमाण प्रमेयोंसे रहित होगा ! अयवा क्या पुनः प्रमाणप्रमेय दोनों स्वरूप होगा ? अथवा क्या शद्वका व्यापारस्वरूप होगा ! तथा क्या पुरुषका व्यापारस्वरूप वह माना जावेगा ! अथवा क्या शब्द और पुरुष दोनोंका मिला हुआ व्यापार स्वरूप होगा ! अथवा क्या शब्द्ध और पुरुषके व्यापारोंसे रहित ही उस नियोगका स्वरूप होगा ? इन पक्षोंको लेकर स्पष्ट उत्तर कहो !
तत्रैकादशभेदोपि नियोगो यदि प्रमाणं तदा विधिरेव वाक्यार्थ इति वेदांतवादप्रवेश प्रभाकरस्य स्यात् प्रमाणस्य चिदात्मकत्वात्, चिदात्मनः प्रतिभासमात्रत्वात्तस्य च परब्रह्मत्वात् । प्रतिभासमात्राद्धि पृथग्विधिः कार्यतया न प्रतीयते घटादिवत् प्रेरकतया वचनादिवत् । कर्मकरणसाधनतया च हि तत्पतीतौ कार्यताप्रेरकताप्रत्ययो युक्को नान्यथा। कि तर्हि, द्रष्टव्योरेऽयमात्मा श्रोतव्योऽनुमंतव्यो निदिध्यासितव्य इत्यादि श्रवणादवस्थांतरविलक्षणेन प्रेरितोहमिति जाताकूतेनाकारेण स्वयमात्मैव प्रतिभाति स एव विधिरिति वेदांतवादिभिरभिधानात्।
___यहां श्री विद्यानन्द आचार्य नियोगवादी प्रभाकरोंके मतका भट्ट मीमांसकों करके खण्डन कराये देते हैं । भट्ट मीमांसकोंने जिस प्रकार नियोगका खण्डम किया है, वह हमको अभीष्ट है। भाद्र कहते हैं कि ग्यारहों मेहवाला नियोग यदि उन आठ भेदोंसे पहिला भेद प्रमाणस्वरूप है। तब तो कर्तव्य अर्थका उपदेश या शुद्ध सन्मात्रस्वरूप विधि ही वाक्यका अर्थ है। इस प्रकार प्रभाकरके यहां ब्रह्माद्वैतको कहनेवाले वेदान्तवादका प्रवेश हो जायेगा। क्योंकि प्रमाण तो चैतन्य आत्मक है और चिद्स्वरूप आत्मा केवळ प्रतिमासमय है और वह शुद्ध प्रतिमाम तो ब्रह्ममय है। केवल प्रतिमासले न्यारी कोई बिधि घटादिकके समान कार्यरूपपने करके नहीं प्रतीत हो रही है। अर्थात्-घट, पट, पुस्तक, आदिक जैसे कार्यपनेसे प्रतीत हो रहे हैं, वैसी विधि कार्यरूप नहीं दीख रही है । अथवा वचन, अंगुलीद्वारा संकेत आदिके समान प्रेरकपने करके भी विधि नहीं जानी जा रही है । ये व्यतिरेक दृष्टान्त हैं । यानी वचन, बेधा आदिक जैसे छोकमें प्रेरक माने गये हैं। वैसी प्रतिमासस्वरूप विधि प्रेरणा करनेवाली नहीं है । हां, कर्मको वाच्यार्य साधनेवाळेपने करके या करणको वाच्य अर्थ साधनेवालेपने करके यदि विधिकी प्रतीति हो रही होती, तब तो विधिमें कार्यपन या प्रेरकपन करके ज्ञान होना उचित होता । अन्यथा यानी कर्मसाधन या करणसाथनपने के