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तत्वार्यचिन्तामणिः
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तिस कारण इस संदर्भ में लाये गये वाक्योंद्वारा यों कह दिया गया समझा जाता है कि मिध्यादृष्टि के हो रहे मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान पक्ष ) विपर्यय हैं ( साध्य ) । सत् और असत् की विशेषता रहित करके यों ही चाहे जैसी उपलब्धि हो जानेसे ( हेतु ) मदसे उन्मत्त हो रहे पुरुषके समान ( अन्वयदृष्टान्त ) इस प्रकार अनुमानवाक्य बना लिया गया है । समानेऽप्यर्थपरिच्छेदे कस्यचिद्विपर्ययसिद्धिं दृष्टान्ते साध्यसाधनयोर्व्याप्तिं प्रदर्शयन्नाह ।
- सम्यग्दृष्टि और मिध्यादृष्टि जीवोंके उत्पन्न हुयी अर्थपरिच्छित्तिके समान होनेपर भी दोनों में से किसी ही एक मिध्यादृष्टिके ही विपर्यय ज्ञानकी सिद्धि है । किन्तु सम्यग्दष्टिका ज्ञान मिथ्याज्ञान 1 नहीं है । इस तस्वकी सिद्धिको दृष्टांत साध्य और साधनकी व्याप्तिका प्रदर्शन करा रहे श्री विद्यानन्द आचार्य विशदरूपसे कहते हैं ।
स्वर्णे स्वर्णमिति ज्ञानस्वर्णे स्वर्णमित्यपि ।
स्वर्णे वा स्वर्णमित्येवमुन्मत्तस्य कदाचन ॥ ७ ॥ विपर्ययो यथा लोके तद्यदृच्छोपलब्धितः । विशेषाभावतस्तद्वन्मिथ्यादृष्टेर्घटादिषु ॥ ८ ॥
उन्मत्त पुरुषको कभी कभी सुत्रर्ण पदार्थमें " सुवर्ण है " इस प्रकार ज्ञान हो जाता है । और कभी सुवर्णरहित (शून्य) मट्टी, पीतल आदि में यह सोना है, भी ज्ञान हो जाता है । अथवा कभी सुवर्ण में डेल, लोहा, आदि असुवर्णरूप इस प्रकार ज्ञान हो जाता है । तिस कारण जिस प्रकार लोकमें यदृच्छा उपलब्धि हो जानेसे विपर्ययज्ञान हो रहा प्रसिद्ध है, उसी प्रकार मिथ्यादृष्टि जीव के घट, पट, आदि पदार्थों में विशेषतारहित करके यदृच्छा उपलब्बिसे मिथ्याज्ञान हो जाता है ।
सर्वत्राहार्य एव विपर्ययः सहज एवेत्येकान्तव्यवच्छेदेन तदुभयं स्वीकुर्वन्नाह ।
सभी स्थलोंपर आहार्यही विपर्ययज्ञान होता है, ऐसा कोई एकान्तवादी कह रहे हैं । प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे बाधा उपस्थित हो जानेपर भी भक्तिवश या आग्रहवश विपरीत ( उल्टा ) ही समझते रहना आहार्य मिथ्याज्ञान है । जैसे कि गृहीत मिथ्यादृष्टि जीव असत्ये उपदेशोंद्वारा विपरीत अभिनिवेश कर लेता है । तथा कोई एकान्तवादी यों कहते हैं कि सभी स्थलोंपर सहज ही विपर्ययज्ञान होता है । उपदेशके विना ही अन्तरंग कारणोंसे मिध्यावासनावश जो विपर्यय ज्ञान अज्ञानी जीवोंके हो रहा है, वह सहज है । इस प्रकार एकान्तोंका व्यवच्छेद करके उन दोनों प्रकारके विपर्ययं ज्ञानोंको स्वीकार करते हुए श्री विद्यानन्द आचार्य समझाकर कहते हैं ।
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