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तापायचिन्तामणि
पदार्थोंमें रूपक माना गया है । पृथक् पृथक् कहे दुये दो वाक्योंका जहां वस्तुस्वभाव करके सामान्यका कथन किया जाता है, वह प्रतिवस्तु-उपमा है, जैसे कि स्वर्गलोकका पालन करनेमें एक इन्द्र ही समर्थ है, तथैव छह खण्डोंके पालनेमें एक भरतचक्रवर्ती ही समर्थ है। इसी प्रकार गगन गगनके ही आकारवाला है। समुद्र समुद्रसरीखा ही गंभीर है, इत्यादिक अनन्वय अळंकारके उदाहरण हैं । इन अलंकारोंसे युक्त हो रहे कविवाक्पोंको सुनकर जो बान होगा, वह शाब्दबोधमें अन्तर्भूत हो जायगा । इस प्रकार नैयायिकोंका मन्तव्य होनेपर तो हम जैन भी टकासा उत्तर देदेंगे कि तब तो गौके सदृश रोझ होता है। चंद्रमाके समान मुख है, इत्यादिक सादृश्य लक्ष्मीके उल्लासको धारनेवाले उपमान वाक्योंसे उत्पन मा जान भी श्रुतज्ञान है। इस सिद्धांतको मी तिस ही कारण यानी प्रवचनरूप निमित्से उत्पन हुए होने के कारण श्रुतवानपना इष्ट कर लेना चाहिये। रूपक आदिको अंगूठा दिखाकर अकेले उपमानको ही न्यारा प्रमाण मानना निरापद मार्ग नहीं है। इस प्रकरणमें अधिक विस्तार करनेसे पूरा पगे, हमारा प्रयोजन सिद्ध होगया। अधिक कहना व्यर्थ है।
प्रतिभा किं प्रमाणमित्याह।।
किसीका प्रश्न है कि कल मेरा माई आवेगा, गेंहू मन्दा जायगा, चादीका भाव चढ जायगा, इत्यादिक सत्य होनेवाले समीचीन विषयोंकी स्कर्ति हो जाती है। समाचतुर विद्वान् समयपर प्रतिभाद्वारा समयोचित कथन कर सम्पजनोंके ऊपर विशेष प्रभाव डाल देते हैं। कविजन प्रतिभा बुद्धिके बलसे प्रसाद गुणयुक्त चमत्कारक अर्थको लिये हुये पदोंकी योजना शीघ्र कर लेते हैं। किन्हीं विद्वानोंने प्रतिमा जानको खतंत्र प्रमाण माना है। अब आप जैन बतलाइये, कि वह प्रतिभा तुम्हारे यहां कौनसा प्रमाण है ! इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर आचार्य महाराज स्पष्ट समाधान कहते हैं।
उत्तरपतिपत्याख्या प्रतिभा च श्रुतं मता।
नाभ्यासजा सुसंविचिः कूटद्रुमादिगोचरा ॥ १२४ ॥ देश, काल, प्रकरण, अनुसार उत्तरकी शोध प्रतिपत्ति हो जाना प्रतिमा नामका ज्ञान है। और वह प्रतिभा हमारे यहां श्रुत ही मानी गयी है। क्योंकि अभ्यन्तर या बहिरंगमें शब्दयोजना करनेसे वह प्रतिमा उत्पन्न हुयी है। अतः श्रुतज्ञानमें ही उसका अन्तर्भाव है। हां, शोंके विना ही अत्यन्त अभ्याससे जो शीघ्र ही उत्तरप्रतिपत्तिखरूप अच्छा सम्वेदन हो जाय वह प्रतिमा तो श्रुत नहीं है। किन्तु मतिज्ञान है । जैसे कि शिखर, धान्यराशि, लोधन या वृक्ष, कुक्षी, आदिको विषय करनेवाली प्रतिमा मतिज्ञान है । प्रज्ञा, मेषा, मनीषा, प्रेक्षा, प्रतिपत्ति, प्रतिमा, स्कृति, आदिकज्ञान सब मतिज्ञानके विशेष है । हाँ, शब्दकी योजना लग जानेपर अर्थसे मान्तरका ज्ञान