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तत्वार्थचिन्तामणिः
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सिंहासनस्थों राजा मंचके महादेवी सुबर्णपीठे सचिवः एतस्मात्पूर्वत एतस्मादुत्तरत एतस्मादक्षिणत एतन्नामेत्यादिवाक्याहित संस्कारस्य पुनस्तथैव दर्शनात्सोऽयं राजेत्यादिसंज्ञासंज्ञिसंबन्धप्रतिपत्तिः । षडाननो गुहश्चतुर्मुखो ब्रह्मातुंगनासो भागवतः क्षीराम्भोविबेचनतुण्डो हंसः सप्तच्छद इत्यादिवाक्याहितसंस्कारस्य तथा प्रतिपत्तिर्वा यद्यागमज्ञानं तदा तद्वदेवोपमानमवसेयं विशेषाभावात् ।
आप्त
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उपमान, उपमेय सूचक वाक्योंके विना ही अन्य प्रतियोगित्व, सामीप्य, तत्रस्थितपना, आदिके द्वारा सूचना देनेवाले आप्तवाक्योंसे हुये इन वक्ष्यमाण ज्ञानोंको आप नैयायिक यदि आगमज्ञान कहते हैं तो उपमान वाक्यसे उत्पन्न हुआ उपमान प्रमाण भी आगमज्ञान हो जाओ " वाक्यनिबन्धनमर्थज्ञानमागमः " आप्तके वाक्योंको निमित्त पाकर जो ज्ञान उपजता है, वह आगम है । पहिले ही पहिले राजसभा में जानेवाले किसी नवपुरुषको दरबार में आने जानेवाले किसी हितैषी मित्रने समझा दिया कि मध्यमें सम्मुख रखे हुये सिंहासनपर जो महान् पुरुष बैठा हुआ दीखे उसको राजा समझना और उसके डेरी ओर सुवर्णके उच्चासनपर बैठी हुयी स्त्रीको पट्टरानी समझो तथा दो हाथ लम्बे चौडे और आधे हाथ ऊंचे सुवर्णके पीठ ( कुर्सी ) पर मंत्री बैठा करता है। इससे पूर्व देशमें और इससे उत्तरकी ओर तथा इससे दक्षिणकी ओर इस इस नामवाले पदवीधर पुरुष विराजते हैं। कोई प्रामोंके अधिपति हैं । नगरोंके अधिपति अमुक व्यक्ति हैं, इत्यादिक आप्तबाक्यके संस्कारोंको धारण करता हुआ पुरुष पुनः अन्यदा राजसभामें जाकर तिस ही प्रकार देखता है, और यह वही राजा है, यह श्री महादेवी है, यह सुवर्ण पीठपर बैठा हुआ मंत्री ( दीवान ) है, इत्यादि पहिली गृहीत की गयीं संज्ञायें और सम्मुख स्थित हो रहे संज्ञावाले जनोंके सम्बन्धी प्रतिपत्ति कर लेता है। बैष्णव पुराणोंमें प्रसिद्ध हो रहे छह मुखोंसे युक्त कार्तिकेयको गृह समझना चाहिये। जिसके चार मुख होंय वह ब्रह्मा है, उन्नत नासिकावाला पक्षी तो विष्णु भगवानका वाहन हो रहा गरुडपक्षी भागवत है। मिले हुये क्षीर (दूध ) और जळके पृथग्भाव करनेमें दक्ष हो रही चोंचको धारनेवाला पक्षी हंस होता है । सात सात पत्तोंके गुच्छोंको धारनेवाला जो वृक्ष है, वह सप्तच्छद समचा जायगा। तीन तीन पत्तेवाला ढाक वृक्ष होता है । छह पैरवाला कीट भ्रमर है। छोटी ग्रीवावाला और ऐंचाताना पुरुष धूर्त होता है, इत्यादि क्योंके संस्कारको धार रहे पुरुषको तिस प्रकार राजा, कार्तिकेय, आदिकी प्रतिपत्ति होना यदि आगमान माना गया है, तो उन्हींके समान उपमानको भी आगमज्ञान निर्णय कर लो । उपमान नामका ही एक प्रमाणभेद मानना तोषकर नहीं है। क्योंकि हंस, सप्तच्छद आदिके आगमज्ञानोंस गौके सादृश्यज्ञानरूप उपमानमें कोई विशेषता नहीं पाई जाती है । आप्तवाक्योंके धारण किये गये संस्कारोंद्वारा तिस प्रकार प्रतिपत्ति होना सर्वत्र एकसा है। कोई अन्तर नहीं है ।