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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
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अंत्यशद्वेषु शद्वत्वे ज्ञानमेकांततः कथम् । विदधीत विशेषस्याभावे योगस्य दर्शने ॥ २९ ॥
चौथा सन्निकर्ष कर्णविवर में रहनेवाले आकाशद्रव्यरूप श्रोत्रका शब्द गुणके साथ समवाय सम्बन्ध है, आदिमें उच्चारण किये गये शब्दके साथ हो रहा, समवाय उस प्रथम उच्चरित शब्दके ज्ञानको न करता हुआ तुम वैशेपिकोंके यहां अन्तिम शब्दके ज्ञानको कैसे करा सकेगा ? भावार्थदेवदत्त यह चार स्वर पांच व्यंजनवाला शब्द युगपत् तो बोला नहीं जा सकता है । क्यों कि तालु आदिक स्थान और आत्माके अनेक प्रपत्नोंसे उत्पन्न होनेवाले न्यारे न्यारे अक्षरक्रमसे ही कहे जा सकते हैं । दे अक्षरका उच्चारण करते समय व नहीं है और व वर्णाको बोलते समय " दे , नष्ट हो चुका है । अतः संस्कारयुक्त अन्त्य वर्ण शाब्दबोधका हेतु माना गया है। ऐसी दशामें त का ज्ञान होनेपर समवाय सन्निकर्ष द्वारा पूर्व वोका ज्ञान क्यों नहीं होता है ? बताओ। आकाश तो नित्य और व्यापक है ? पांचवां सन्निकर्ष कर्ण इन्द्रियका शब्दत्वके साथ समवेत समवाय है । कर्णरूप आकाशमें शन्न गुण समवाय सम्बन्धसे वर्तमान है और शब्द गुणमें शब्दत्व जातिका समवाय है । आदे वर्णमें नहीं किन्तु अन्तिम शब्दमें रहनेवाले शब्दत्वका समवेत समवाय द्वारा जैसे श्रावण प्रत्यक्ष होता है, उसीके समान आदिमें उच्चारण किये गये शब्दोंमें रहनेवाले शब्दत्वका विद्यमान समवेत समवाय संनिकर्ष होरहा क्यों नहीं श्रावण प्रत्यक्षको कराता है ? आदिके शब्दोंको छोडकर अन्त्य शब्दोंमें ज्ञान करानेके समान आदि शब्दके शब्दत्वका भी ज्ञान करादेवे । जब वैशेषिकोंके दर्शनमें ऐसी कोई विशेषता नहीं है तो फिर अन्तिम शब्दोंमें रहनेवाले शब्दत्वका ही एकान्तरूपसे ज्ञान वह सन्निकर्ष कैसे कर देवेगा? यह चौथे पांचवे सन्निकर्षका अन्वयव्यभिचार हुआ।
x तथाऽभाव(च) संयुक्तविशेषणतया दृशा ।
ज्ञानेनाधीयमानेपि समवायादिवित्कुतः ॥ ३०॥
अभाव और समवायके प्रत्यक्ष करानेमें संयुक्त विशेषणता, संयुक्तसमवेत विशेषणता, आदि सन्निकर्ष माने हैं । चक्षुके साथ भूतल संयुक्त है । और भूतलमें घटका अभाव विशेषण हो रहा है अथवा आममें रसका समवाय है । रसमें रूपत्वका अभाव विशेषण हो रहा है । अतः चक्षसे रसमें संयुक्त समवेतविशेषणता सन्निकर्षद्वारा रूपत्वका अभाव जानलिया जाता है । तथा रूपत्व, रसत्व आदिमें घट आदिकका अभाव तो संयुक्तसमवेत-समवेतविशेषणता सन्निकर्षसे जान लिया जाता है । घटाभावमें पटाभावका प्रत्यक्ष संयुक्तविशेषण विशेषणतासे हो जाता है। चक्षुसे संयुक्त भूतल है । भूतलमें स्वरूपसम्बन्धसे घटाभाव विशेषण है । और घटाभावमें पटाभाव विशेषण
४ तथागतस्य इति मुद्रित पुस्तके,