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तस्वार्थ लोक वार्तिके
कथन नहीं किया है । शंकासमाधानका भार हमने मीमांसकके ऊपर ही घर दिया है । पुद्रद्रव्यकी पर्याय शब्द है, यह जगत्प्रसिद्ध सिद्धान्त है ।
प्रपंचतो विचारितमेतदन्यत्रास्माभिरिति नेहोच्यते ।
हमने उस तत्त्वका अधिक विस्तार के साथ अन्य ग्रन्थोंमें विचार कर दिया है। इस कारण अब यहां नहीं विशेष कथन किया जाता है। अतः श्रोत्र इन्द्रिय प्राप्यकारी है और चक्षु इन्द्रिय मनके समान अप्राप्यकारी है । अतः चक्षु और मनसे व्यंजनावग्रह नहीं हो पाता है ।
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इस सूत्र का सारांश |
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" न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम् " इस सूत्र के परिभाष्य प्रकरणोंकी संक्षेपसे सूची इस प्रकार है कि अस्पष्ट अतएव परोक्षज्ञान व्यंजनावग्रहके प्रसंगप्राप्त कारणोंका निषेध करनेके लिये श्री उमास्वामी महाराज के मुखपद्मसे इस सूत्रजलका बहना आवश्यक है । अन्यथा अभीष्ट नियम नहीं हो सकता था । कटु औषधिके अरुचिपूर्वक शीघ्र मक्षण करते समय पहिले रसनाद्वारा व्यंजनावग्रह होता है | पश्चात् विशेष उपयोग लगानेपर औषधिके अर्थावग्रह, ईहा आदि ज्ञान होते हैं । अव्यक्त नहीं जानकर पदार्थोंको व्यक्त ही जाननेवाले चक्षु और मनसे व्यंजनावह नहीं हो पाता है । प्राप्तिके समान अप्राप्ति भी अनेक प्रकारकी हैं । अप्राप्ति में नका अर्थ पर्युदास है । विषयके साथ चक्षुकी अप्राप्तिसे मन इन्द्रियकी अप्राप्ति न्यारी जातिकी है । अभिमुख हो रहे अप्राप्त अर्थको चक्षु जानती है और मन अभिमुख, अनभिमुख, प्राप्त, अप्राप्त अर्थीको भी जान लेता है । अभाव भी भावकारणोंके समान कार्यकी उत्पत्ति में सहायक हो जाते हैं । भित्ति आच्छादन, वस्त्र आदिका अभाव चाक्षुषप्रत्यक्षमें कारण है। सर्प, सिंह या कूटप्रबन्धक -राजवर्ग आदिका अभाव निराकुल अध्ययन, अध्यापन, धन उपार्जन, आदि कार्योंका सहायक है । कार्यत्वावच्छेदकावच्छेदेन प्रतिबन्धकाभावको कारण माना गया है। ज्ञानका प्रधान अन्तरंग कारण क्षयोपशम या क्षय है । इसके आगे वैशेषिकों के माने गये व्यक्तिरूप या शक्तिरूप चक्षुओंका प्राध्यापन खण्डित किया है । प्रत्यक्ष, अनुमान, आगमप्रमाणोंसे चक्षुके प्राप्यकारित्वकी बाधा आती है। प्राप्त हो रहे अंजन, तिल, आदिको चक्षु नहीं जान पाती है, इसका अच्छा विचार चलाया है | मन इन्द्रियंका अप्राप्यकारिल प्रसिद्ध ही है । स्फटिक आदिको नहीं तोडकर स्फटिकके भीतरकी वस्तुओंका चाक्षुष प्रत्यक्ष हो जाता है। यदि चक्षुओं की किरणें अतिकठोर और लोहसे भी अe स्फटिकको फोडकर भीतर घुस जाती हैं, तो रूई या मलिनजलसे ढके हुये पदार्थको तो
बडी सुलभता से जान लेंगी। यहां वैशेषिकों द्वारा मानी गयी स्फटिककी उत्पादविनाशप्रक्रिया पर अच्छा आघात किया गया है। नैयायिक, वैशेषिकप्रमृति कोई कोई विद्वान् वस्तुस्थितिका तिरस्कार