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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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जाते हैं । खिलाडी छोकरोंका सनिधान होनेपर विद्वान्में कुछ गम्भीरताकी त्रुटि होकर लडकपन जा जाता है। साथमें विद्वान्के संसर्गसे छोकरोंमें भी कुछ गम्भीरता या जाती है।
निसृतोक्तमथैवं स्यात्तस्येत्यपि न शंस्यते ।
सर्वामाप्तिमवेक्ष्यैवानिसृतानुक्ततास्थितः ॥४१॥
अब वैशेषिक पुनः कटाक्ष करते हैं कि इस प्रकार कहनेपर तो उस वस्तुका ज्ञान निसृत और उक्त ही हुआ । अर्थात्-इन्द्रियोंद्वारा जब सूक्ष्म अंश सम्बन्धित कर लिये गये हैं, तब तो वह ज्ञान निसृत और उक्त अर्थका ही कहा गया । इसपर वाचार्य कहते हैं कि यों भी शंका नहीं करनी चाहिये । कारण कि सम्पूर्ण अंशोंकी अप्राप्तिका विचार कर ही अनिसृतपन और अनुक्तपनकी व्यवस्था की गयी है । भावार्थ-मलें ही वस्तुके थोडे अंश निकल गये होंय या अभिप्रायसे कुछ शद्रोंके अंश कह दिये गये होंय फिर भी सम्पूर्ण अंशोंके नहीं निकलने और कहनेकी अपेक्षासे वह अनिसृत और अनुक्तका बान व्यवहृत हो जायगा । मुनियोंके सदृश अल्प क्रियाओंके पालते हुये भी कोई गृहस्थ मुनि नहीं कहा जा सकता है।
___ न हि वयं कात्स्येनाप्राप्तिपर्यस्यानिस्तत्वमनुक्तत्वं वा ब्रूमहे यतस्तदवग्रहादिहेतो. रिद्रियस्यामाप्यकारित्वमायुज्यते । किं तर्हि । सूक्ष्मैरवयवैस्तद्विषयज्ञानावरणक्षयोपशमरहिवजनावेधैः कैश्चित प्राप्तानवभासस्य चानिसृतस्यानुक्तस्य च परिच्छेदे प्रवर्तमानबिंद्रियं नामाप्यकारि स्याचक्षुष्वेवममाप्यकारित्वस्याप्रतीते।
हम स्याद्वादी विद्वान् सम्पूर्णरूपसे प्राप्ति नहीं होनेको अर्थका बनिसृतपना अथवा अनुक्तपना नहीं कह रहे हैं । जिससे कि सूक्ष्म अंशोंसे सम्बद्ध हो रहे भी किन्तु पूर्ण अवयवोंसे नहीं प्राप्त हो रहे उन अर्थोके अवग्रह आदि शानोंकी कारण हो रही स्पर्शन आदिक इन्द्रियोंको अप्राप्यकारीपनका वायोजन किया जाय । तो हम क्या कहते हैं ! सो सुनो । उन सूक्ष्म अवयवोंको विषय करनेवाले ज्ञानावरण क्षयोपशमसे रहित हो रहे जीवोंकरके नहीं जानने योग्य ऐसे कितने ही छोटे छोटे अवयवोंद्वारा प्राप्त हो रहे भी और अबतक नहीं प्रतिमास किये गये अनिसृत और अनुक्त अर्थके परिच्छेद करनेमें प्रवर्त रही इन्द्रियां अप्राप्यकारी नहीं हो सकेंगी। क्योंकि चक्षुमें इस प्रकारका अप्राप्यकारीपना नहीं प्रतीत हो रहा है। अर्थात्-सूक्ष्म और स्थूल अंश या मूलपदार्थके साथ समी प्रकार सम्बन्ध न होनेपर चक्षु असम्बद्ध अर्थको जानती है। अतः चक्षुमें अप्राप्यकारीपन है। सूक्ष्म अंशोंसे प्राप्ति होकर पदार्थ ज्ञान कराते हुये कल्पित कर लिया गया अप्राप्यकारीपना चक्षुमें नहीं है। किन्तु प्रकरणमें सूक्ष्म अवयवोंसे प्राप्ति होकर स्पर्शन आदि इन्द्रियोंसे मानसृत अर्थका अवग्रह किया गया है। अतः चार इन्द्रियां अप्राप्यकारी नहीं हो सकती हैं। वे सूक्ष्म अवयव