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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
प्रकारके अर्थोंमें एक सम्वेदन होनेके व्यवहारके अभावका प्रसंग हो जायगा, जो कि इष्ट नहीं है। बालक या पशुपक्षी भी एकज्ञानसे अनेक अर्थोंको युगपद् जान रहे प्रतीत होते हैं ।
कथं च मेचकज्ञानं प्रत्यर्थवशवर्तिनि । ' ज्ञाने सर्वत्र युज्येत परेषां नगरादिषु ॥ २३ ॥
यदि ईश्वरको छोडकर अन्य जीवोंके सभी ज्ञानोंको वैशेषिक प्रत्येक अर्थके अधीन होकर वर्तनेवाला मानेंगे ऐसा होनेपर तो भला मेचकज्ञान कैसे युक्त बन सकेगा ? बताओ । अनेक नील, पीत, आदि आकारोंको जाननेवाला चित्रज्ञान तो एक होकर अनेकोंका प्रतिभास कर रहा है। दूसरी बात यह है कि नगर, ग्राम, वन, सेना, आदिमें दूसरे विद्वान् वैशेषिकोंके यहां एक ज्ञान नहीं हो सकेगा। क्योंकि अनेक बाजार या हवेलियोंका सामुदायिक एक ज्ञान होनेपर ही एक नगरका ज्ञान हो सकता है । अनेक वृक्षोंका एक हो जाना माननेपर ही एक वनका ज्ञान सम्भवता है । अनेक घोडे, पियादे, तोपखाना, अश्ववार सैनिक आदि बहुत पदार्थीका एक ज्ञानद्वारा ग्रहण होना माननेपर ही एक सेनाका ज्ञान सम्भवता है, अन्यथा नहीं । एक बात यह भी है कि जब ज्ञानके स्वभावकी परीक्षा हो रही है तो ईश्वरका ज्ञान क्यों छोडा जाता है ! ऐसी दशामें सर्वज्ञता नहीं बन सकती है।
न हि नगरं नाम किंचिदेकमस्ति ग्रामादि वा यतस्तद्वेदनं प्रत्यर्थवशवर्ति स्यात् । पासादादीनामल्पसंयुक्तसंयोगलक्षणा प्रत्यासत्तिर्नगरादीति चेत् न, प्रासादादीनां स्वयं संयोगत्वेन संयोगांतरानाश्रयत्वात् ।
नगर नामका कोई एक पदार्थ तो है नहीं । अथवा ग्राम, सेना, सभा, मेला, धान्यराशि आदिक कोई एक ही वस्तु नहीं है । जिससे कि उनमें नगर, सेना आदिका एक ज्ञान होता हुआ प्रत्येक अर्थके वशवर्ती हो सके । अतः अनेकोंको भी जाननेवाला एक ज्ञान मानना पडेगा । इसपर यदि वैशेषिक यों कहें कि नगर तो एक ही पदार्थ है । वन, सेना, प्राम, आदि भी एक ही एक पदार्थ हैं । अनेक प्रासादों ( महलों ) आपणों ( बाजारों ) और कोठियों आदिका अति अल्प संयुक्त संयोगस्वरूपसे संबंध हो जाना ही एक नगर है । अर्थात् एक हवेलीका दूसरी हवेलीसें अति-निकटसंयोग होना और उस संयुक्त हवेलीका तीसरी हवेली या गृहके साथ अल्पनिकट संयोग होना । इसी प्रकार बाजार मुइल्ले, कूचे, मंडी आदि अनेकोंका अति निकट एक संयोग हो जाना ही एक नगर पदार्थ है । इसी ढंगसे घोडे, सैनिक, आदि अनेक पदार्थोंका परस्परमें संयुक्त या अतिनिकट होकर परम्परासे अन्तमें एक महासंयोगरूप पदार्थ बन जाता है, वह सेना एक वस्तु है । ग्राम आदिमें भी यही समझ लेना । अनेक घरोंका एक दूसरेसे संयुक्त होते होते