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स्वार्थ लोकवार्तिके
आदिरूप व्यवसाय भी एक ही बार में बहुतसे अथवा बहुत प्रकारके पदार्थोंको विषय कर लेवेगा . कोई विरोध नहीं आता है । और इस प्रकार ज्ञानोंको जानने के लिये ज्ञान और उनको भी जानने के लिये पुनः ज्ञान इस ढंगसे हुई परम्पराके कठिन श्रमका भी निराकरण कर दिया जाता है । तिस कारण झट ही बहु आदिक अर्थोकी प्रतिपत्ति हो जाती है । अतः एक ज्ञान भी अनेक और अनेक प्रकारके अर्थोको जान सकता है । कोई बाधा नहीं आती है ।
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एवं बहुत्व संख्यायामेकस्यावेदनं न तु । संख्येयेषु बहुष्वित्ययुक्तं केचित्प्रपेदिरे ॥ २१ ॥ बहुत्वेन विशिष्टेषु संख्येयेषु प्रवृत्तितः । बहुज्ञानस्य तद्भेदैकांताभावाच्च युक्तितः ॥ २२ ॥
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कोई प्रतिवादी यह मान रहे हैं कि एक ज्ञानके द्वारा बहुत्व नामकी एक संख्या में आवेदन करा दिया जाता है । किन्तु गिनने योग्य संख्यावाले बहुत अर्थों में इप्ति नहीं कराई जाती है । ( विषये सप्तमी ) इस प्रकार जो कोई समझ रहे हैं, वह उनका समझना युक्तिरहित है । क्योंकि बहुत्व नामकी संख्यासे विशिष्ट हो रहे अनेक संख्या करने योग्य अर्थोंमें एक बहुज्ञानकी प्रवृत्ति हो रही देखी जाती है । अर्थात् – एक इन्द्रियजन्य एकज्ञान एक समय में सैकडों, हजारों, अनेक पदार्थोंको जान लेता है । प्रतिवादी किन्हीं वैशेषिकोंने बहुत्व संख्याको भी समवाय सम्बन्धसे अनेकों में वृत्ति माना है । भले ही पर्याप्ति सम्बन्धसे बहुत्व नामकी एक संख्या अनेकोंमें रहती है । किन्तु समवायसम्बन्धसे प्रत्येक में न्यारी न्यारी होकर ही अनेक बहुत्व संख्यायें अनेकोंमें ठहरती हुई. मानी गयी हैं । जैन सिद्धान्त अनुसार तो संख्या और संख्यावान्का एकान्तरूपसे भेद नहीं है । गुण और गुण सर्वथा भेदका युक्तियोंसे निराकारण कर कथंचित् अभेदको हम पहिले सिद्ध कर चुके हैं । अतः एक ज्ञानद्वारा बहुत्व संख्याको जाननेवाले वादीको बहुत्व संख्यासे कथंचित् अन्न हो रहे अनेक बहुत पदार्थोंका ज्ञान हो जाना अभीष्ट करना पडेगा ।
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न हि बहुत्वमिदमिति ज्ञानं बहुष्वर्थेषु कस्यचिच्चकास्ति बहवोमी भावा इत्येकस्य वेदनस्यानुभवात् । संख्येयेभ्यो भिन्नामेव बहुत्वसंख्यां संचिन्वन् बहवोध इति बेचि तेषां तत्समवायित्वादित्ययुक्ता प्रतिपत्तिः । कुटाद्यवयविप्रतिपत्तौ साक्षात्तदारंभकपरमाणुप्रतिपत्तिप्रसंगात् । अन्यत्र प्रतिपत्तौ नान्यत्र प्रतिपत्तिरिति चेत्, तर्हि बहुत्वसंवित्तौ बहर्थसंवित्तिरपि माभूत् ।
बहुत अर्थीको नहीं जानकर उन बहुतसे अर्थों में यह एक बहुत्व संख्या है । इस प्रकारका ज्ञान तो किसी छोटे छोकरे को भी नहीं प्रतिभासता है । किन्तु ये या वे आम, रुपये, घोडे आदि