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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
विशिष्टस्य चक्षुर्दर्शनादिविभागभारके तु नाममात्रग्रहणे दर्शनव्यपदेशः श्रेयानित्यग्रे प्रपंचतो विचारयिष्यते ।
सम्पूर्ण वस्तुओंकी संग्रहीत केवल सत्ताको ग्रहण करनेवाला परसंग्रहनय यों तो दर्शन उपयोग हो जावेगा । इस प्रकार दर्शनके लक्षणकी अतिव्याप्ति दोष हो जानेकी शंका नहीं करनी चाहिये । क्योंकि वह संग्रहनय तो श्रुतज्ञानका भेद है। अविशद प्रतिभासनेवाला ज्ञान होनेसे उस संग्रहको नयपना बन रहा है । श्रुतज्ञानके भेद नयज्ञान होते हैं। ऐसा ग्रन्थोंमे कहा गया है। तथा केवल आत्माका ही ग्रहण करना भी दर्शन उपयोग नहीं है । क्योंकि यों तो अचक्षुर्दर्शनके सिवाय चक्षुर्दर्शन, अवधिदर्शन, और केवलदर्शनोंके अभावका प्रसंग हो जावेगा । यदि चक्षु या स्पर्शन, रसना, घ्राण, श्रोत्र, मन, रूप अचक्षु आदिकी अपेक्षा रखनेवाले और चक्षुः आवरण कर्मके क्षयोपशम आदिसे विशिष्ट हो रहे आत्माको ही चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, केवलदर्शनरूप विभागोंको धारण करलेनेवालापन माना जायगा, तब तो केवल आत्माके ग्रहण करनेमें ही दर्शन उपयोगका व्यवहार करना श्रेष्ठ नहीं है। इस बातको आगेके ग्रन्थमें विस्तारसे विचरवा देंगे । “ दृष्टव्योयमात्मा" केवल इतनेसे ही उपयोग पर्याप्त नहीं हो जाते हैं ।
नन्ववग्रहविज्ञानं दर्शनाजायते यदि । तस्येंद्रियमनोजत्वं तदा किं न विरुध्यते ॥ १६ ॥ पारंपर्येण तजत्वात्तस्येहादिविदामिव । को विरोधः क्रमाद्वाक्षमनोजन्यत्वनिश्चयात् ॥ १७ ॥ इंद्रियानिद्रियाभ्यां हि यत्त्वालोचनमात्मनः। स्वयं प्रतीयते यद्वत्तथैवावग्रहादयः ॥ १८ ॥
यहां शंका होती है कि अवग्रहरूप मतिज्ञान यदि दर्शनसे उत्पन्न होता है, तब तो उस मतिज्ञानका पूर्व सूत्र अनुसार इन्द्रिय और मनसे जन्यपना क्यों नहीं विरुद्ध पडेगा ? इसपर आचार्य उत्तर कहते हैं कि ईहा, अवाय, आदि ज्ञानोंके समान वह अवग्रह भी परम्परा करके इन्द्रिय और मनसे जन्य है । अथवा क्रमसे अच और मन द्वारा जन्यपनेका निश्चय हो जानेके कारण कौन विरोध आता है ? अर्थात्-साक्षात् रूपसे अवग्रह दर्शन करके जन्य है । और परम्परा करके इन्द्रियमनोंसे जन्य है । यह क्रम चालू है, कारण कि जिस प्रकार अनिन्द्रियसे जो आत्माका आलोचन होना स्वयं प्रतीत हो रहा है । तिस ही प्रकार अवमह, ईहा, आदिक भी तो इन्द्रिय और मनसे होते हुये स्वयं प्रतीत हो रहे हैं । फिर शंका उठाना व्यर्थ है। कार्यकी उत्पत्तिमें असाधारण होकर व्यापार करनेवाले परम्परा कारण भी प्रेरक कारणोंमें गिनाये जाते हैं।