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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः खभावविरुद्धोपलब्धि निश्चित्यानुपलब्धेरीतरभूतां व्याप्यविरुद्धोपलब्धिमुदाहरति: यहांतक निषेध्यसाध्यके स्वभावसे विरुद्धकी उपलब्धिका निश्चय कर अब ग्रन्थकार अनुपलब्धिसे भिन्नखरूप हो रही व्याप्यविरुद्ध-उपलब्धिका उदाहरण दिखाते हैं। व्यापकार्थविरुद्धोपलब्धिरत्र निवेदिता । यथा न सन्निकर्षादिः प्रमाणं परसंमतम् ॥ २५१ ॥ अज्ञानत्वादतिव्यालेनित्वेन मितेरिह । व्यापकव्यापकद्विष्टोपलब्धियमिष्यते ॥ २५२ ॥ स्यात्साधकतमत्वेन स्वार्थज्ञप्तौ प्रमाणता । व्याप्ता या च तया व्या ज्ञानात्मत्वेन साध्यते ॥ २५३ ॥ लगे हाथ यहां व्यापक अर्थसे विरुद्ध हो रहे की उपलब्धि भी निवेदन कर दी गई है। उसका उदाहरण यों है कि वैशेषिक सांख्य आदि परवादियोंके सम्मत हो रहे सन्निकर्ष, इन्द्रियवृत्ति, कारकसाकल्य, आदिक ( पक्ष) प्रमाण नहीं हैं ( साध्य ), अज्ञानरूप होनेसे ( हेतु ) यहां ज्ञानपने करके प्रमाणताकी व्याप्ति हो रही हैं। अज्ञानको प्रमाण माननेपर अतिव्याप्ति दोष है। अर्थात् घट आदिक भी प्रमाण बन बैठेंगे, जो कि इष्ट नहीं है। अतः प्रमाणरहितपना साध्यमेंसे निषेध अंशको निकालकर प्रमाणपनरूप. साध्यके व्यापक. ज्ञानवसे विरुद्ध अज्ञानपनकी उपलब्धि व्यापकविरुद्ध उपलब्धि है । अथवा यह अज्ञानत्व हेतु व्यापकव्यापक-विरुद्ध उपलब्धि इष्ट किया गया है। प्रमाणपनका व्यापक प्रमितिका साधकतमपना है, और प्रमितिके साधकतमपनेका व्यापकज्ञानपना है । उस ज्ञानपनेके विरुद्ध अज्ञानत्वकी उपलब्धि हो रही है। स्व और अर्थकी ज्ञप्ति करनेमें प्रकृष्ट उपकारकपनेकरके जो प्रमाणता व्याप्त हो रही है, वही प्रमाणता ज्ञानरूपपनेसे व्याप्त हो रही है। और व्यापकज्ञानपनेके निषेधखरूप अज्ञानपनकरके प्रमाणत्वका अभाव साध लिया जाता है। यदा प्रमाणत्वं ज्ञानत्वेन व्याप्तं साध्यतेऽज्ञानस्य प्रमाणत्वेतिप्रसंगात् तदा तद्विरुद्धस्याज्ञानत्वस्योपलब्धिापकविरुद्धोपलब्धिर्बोध्या न सन्निकर्षादिरचेतना प्रमाणमज्ञानत्वादिति । यदा तु प्रमाणत्वं साधकतमत्वेन व्याप्तं तदपि ज्ञानात्मकत्वेन व्याप्तं साध्यतेऽसाधकतमस्य प्रमाणतानुपपत्तेरज्ञानात्मकस्य च स्वार्थममिती साधकतमत्वायोगात् । छिदिक्रियादावेवाज्ञानात्मनः परश्वादेः साधकतमत्वोपपत्तेः । तदा व्यापकव्यापकविरुद्धोपलब्धि: सैवोदाहर्तव्या ॥
SR No.090497
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1953
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size21 MB
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