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तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिके
न मतिश्रुतयोरैक्यं साहचर्यात्सहस्थितेः। विशेषाभावतो नापि ततो नानात्वसिद्धितः ।। २६ ॥
मतिज्ञान और श्रुतज्ञानका सहचरपनेसे अथवा एक आत्मामें साथ साथ स्थिति होनेसे एकपना नहीं है तथा परस्परमें विशेषता न होनेसे भी एकपना जो साधागया है सो ठीक नहीं है। क्योंकि तिन हेतुओंसे तो प्रत्युत नानापनकी सिद्धि होती है, जैसे कि अमावस्याके दिन सूर्य और चन्द्रमाका सहचरपना अनेकपनके साथ व्याप्ति रखता है, एक आत्मामें ज्ञान, सुख, तथा एक आम्र फलमें रूप और रसका अवस्थान हो रहा है, किन्तु वे अनेक हैं। इसी प्रकार सजातीय गौओं या रुपयोंमें अनेकपना होनेपर ही अविशेषता देखी जाती है।
साहचर्यादिसाधनं कथंचिनानात्वेन व्याप्तं सर्वयैकत्वे तदनुपपवेरिति तदेव साधयेन्मतिश्रुतयोने पुनः सर्वथैकत्वं तयोः कथंचिदेकत्वस्य साध्यत्वे सिद्धसाध्यतानेनैवोक्ता।
प्रश्नकर्ताके द्वारा एकाना साधनेमें दिये गये साहचर्य आदि हेतु तो विरुद्ध हैं । वे तीनों हेतु कथंचित् नानापनके साथ व्याप्त हो रहे हैं । सर्वथा एकपन माननेपर बे सहचरपना आदिक नहीं बन पाते हैं । इस कारण वे हेतु उस कथंचित् नानापनको ही साधेंगे, किन्तु फिर मतिज्ञान
और श्रुतज्ञानके सर्वथा एकपनेको नहीं । हां, उन दोनों ज्ञानोंमें कथंचित् एकपनेको साध्य करनेपर तो हम जैनोंको सिद्धसाध्यता है । यह इस कथंचित् अनेकत्वके साथ हेतुओंकी व्याप्तिका समर्थन कर देनेसे कह दी गयी समझ लेना चाहिये ।
साहचर्यमसिद्धं च सर्वदा तत्सहस्थितिः । नैतयोरविशेषश्च पर्यायार्थनयार्पणात् ॥ २७ ॥
और पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षासे विचारा जाय तब तो वे तीनों हेतु स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास हैं। कारण कि मतिज्ञान और श्रुतज्ञानरूप पर्यायें आत्मामें क्रमसे ही होती हैं । अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि नक्षत्रोंके उदयसमान क्रमवर्ती पर्यायोंमें व्यक्तिरूपसे सहचरपना नहीं है । तथा सदा ही आत्मामें उन पर्यायोंकी साथ साथ स्थिति भी नहीं है। एक समयमें छमस्थ जीवोंके दो उपयोग नहीं हो पाते हैं । तथा मति और श्रुतमें पर्यायदृष्टिसे अविशेषएना भी नहीं है, किन्तु बडा भारी अन्तर है । श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीने “ सुदकेवलं च णाणं दोण्णिवि सरिसाणि होति बोहादो । सुदणाणं तु परोक्खं पञ्चक्खं केवलं गाणं ॥” इस गाथा द्वारा केवलज्ञानके सदृश श्रुतज्ञानको माना है । आठवेंसे लेकर बारहवें तक गुणस्थानोंमें प्रधानरूपसे श्रुतज्ञान ही ध्यानका स्वरूप धारण कर कर्मप्रकृतियोंको काट रहा है । हां, मतिज्ञानमें शुद्धआत्माका मानस प्रत्यक्ष होना