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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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- जिस ही प्रकार प्रतिषेधकी प्रधानता होनेसे साध्यके विना हेतुका नहीं ठहरनारूप अन्यथानुपपत्तिस्वरूप व्यतिरेक यह माना जाता है, तिसी प्रकार विधिकी प्रधानता होनेसे साध्यके होनेपर ही हेतुका रहनारूप तथोपपत्ति ही अन्वय है । यह क्या अनिष्ट है ! अर्थात् नहीं। स्याद्वादियोंकरके उस तथोपपत्तिरूप अन्वयको हेतुका लक्षण स्वीकार किया गया है । हां, दूसरे नैयायिक, बौद्ध, आदिकोंसे स्वीकार किया गया सपक्षमें वर्तनारूप अन्वय तो हेतुका लक्षण नहीं है, जैसे कि पक्षमें वृत्ति होना हेतुका रूप नहीं है। यहांतक पक्षवृत्तित्व और सपक्षवृत्तित्व इन दो रूपोंको हेतुका लक्षणपना खण्डित कर दिया है। अब तीसरे विपक्षव्यावृत्तिरूपका विचार चलाते हैं।
नापि व्यतिरेकः । स हि विपक्षायावृत्तिः विपक्षस्तविरुद्धस्तदन्यस्तदभावश्चेति त्रिविध एव तत्र
बौद्धोंका माना गया विपक्षमें नहीं वर्तनरूप व्यतिरेक भी हेतुका लक्षण नहीं है । क्योंकि वह तीसरा रूप विपक्षसे व्यावृत्ति होना है। अब बताओ, वह विपक्ष क्या हो सकता है ! उस साध्यवालेसे विरुद्ध विपक्ष होगा उस साध्य ( साध्यवान् ) से अन्य विपक्ष होगा अथवा उस साध्य (साध्यवान् ) का अभावरूप विपक्ष होगा, इस ढंगसे तीन प्रकारका ही विपक्ष हो सकता है । तिन तीनोंमेंसे एक एकका विचार करते हैं।
तद्विरुद्ध विपक्षे च तदन्यत्रैव हेतवः । असत्यनिश्चितासत्त्वाः साकल्यानेष्टसाधनाः॥ १७८ ॥
उस साध्यसे विरुद्ध हो रहे विपक्षमें और उस साध्यसे सर्वथा भिन्न हो रहे ही विपक्षमें साध्यके न होनेपर जिन हेतुओंका नहीं विद्यमान होनापन निश्चित नहीं हुआ है, वे हेतु तो सम्पूर्ण रूपसे इष्टसाध्यको साधनेवाले नहीं हैं । अतः प्रथमविकल्प और द्वितीयविकल्प तो प्रशस्त नहीं है ।
यथा साध्यादन्यस्मिन् विपक्षे निश्चितासत्वा अपि हेतवोमित्वादयो नेष्टाः अग्न्यादि साधनास्तेषां साध्याभावलक्षणे विपक्षे कुतश्चिदनिश्चितासत्त्वरूपत्वात् । तथा साध्यविरुद्धपि विपक्ष निश्चितासत्त्वा अपि धूमादयो नेष्टा अग्न्यादिसाधनास्तेषामग्न्यभावे स्वयमसत्त्वेनानिश्चयात् ।
जिस प्रकार साध्यसे सर्वथा मिन हो रहे विपक्षमें असत्त्वका निश्चय रखनेवाले भी अग्नित्व आदिक हेतु अग्नि आदिको साधनेवाले नहीं इष्ट किये गये हैं। क्योंकि उन हेतुओंका साध्याभाव स्वरूप विपक्षमें किसी भी कारणसे विद्यमान नहीं रहनारूप निश्चित नहीं हुआ है । भले ही साध्य भिन्न विपक्षमें वे नहीं रहें, तिसी प्रकार साध्यसे विरुद्ध हो रहे भी विपक्षमें निश्चित है असत्त्व जिनका, ऐसे धूम आदिक भी अग्नि आदिको साधने के लिये सद्धेतु नहीं माने गये हैं । क्योंकि उन धूम आदिकोंका अग्निके न होनेपर स्वयं अविद्यमानपने करके निश्चय नहीं हुआ है । भावार्थ