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तत्वार्थ छोकवार्तिके
तिस अनुमान के प्रकरणमें साधनका एक ही लक्षण है, जो कि अन्यथानुपपत्ति यानी साध्यके विना हेतुका न रहना है और साध्यका लक्षण शक्य, अभिप्रेत, और अप्रसिद्ध कहा गया है, अर्थात् जो वादी द्वारा प्रतिवादी के प्रति साधने योग्य होय और वादीको अभीष्ट होय तथा प्रतिवादीको अभीतक प्रसिद्ध नहीं हुआ होय, वह साध्य किया जाता है।
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तत्साध्याभिमुखो बोधो नियतः साधने नयः । कृतोनिंद्रिययुक्तेनाभिनिबोधः स लक्षितः ॥ १२३ ॥
बुध अव
तिस कारण “ साधनात्साध्यविज्ञानम् ” इसका अर्थ यों है कि अनिन्द्रिय यानी मनसे सहकृत हो रहे साधनज्ञान करके साध्यकी ओर अभिमुख होकर नियत हो रहा जो बोध किया गया है, वह अभिनिबोधका लक्षण हुआ समझो अर्थात् अभि और नि उपसर्गपूर्वक " गमने " धातुसे घञ् प्रत्ययकर अभिनिबोध शब्द बना है । अभि यानी साध्यके अभिमुख नियानी अविनाभावरूप नियमसे जकडा हुआ बोध यानी साधनसे साध्यका ज्ञान होना, इस प्रकार निरुक्ति करनेसे अभिनिबोधका अर्थ अनुमान हो जाता है। साधनका ज्ञान अनुमानका उत्थापक है । अन्यथा सोते हुये पुरुष या बालक अथवा व्याप्तिस्मरण नहीं करनेवालेको भी धूमके सद्भाव मात्र से वह्निके ज्ञान हो जानेका प्रसंग आवेगा ।
साध्याभावासंभवनियमलक्षणात्साधनादेव शक्याभिनेता प्रसिद्धत्वलक्षणस्य साध्यस्यैव यद्विज्ञानं तदनुमानमाचार्या विदुः यथोक्तं हेतुविषयद्वारकविशेषणयोरन्यतरस्यानुमानत्वाप्रतीतेः । स एव वाभिनिबोध इति लक्षितः । साध्यं प्रत्यभिमुखस्य नियमितस्य च साधनेनानिन्द्रिययुक्तेनाभिबोधस्याभिनिबोधत्वात् ।
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साध्य के अभाव होनेपर नियमसे असम्भव होना जिसका लक्षण है, ऐसे साधनसे ही शक्य, अभिप्रेत, और अप्रसिद्धपना लक्षणवाले साध्यका ही जो विज्ञान होता है, वह अनुमान है ऐसा आचार्य महाराज श्री माणिक्यनंदी मान रहे हैं । पूर्वोक्त अनुसार अभिमुख और नियमत अर्थको कहनेवाले तथा हेतुकरके जाने गये विषयको द्वार बनाकर उपात्त किये गये अभि और नि इन दो विशेषणों में से किसी भी एकके नहीं लगानेपर अनुमानपना प्रतीत नहीं होता है। अतः वही ज्ञान अभिनिबोध है, ऐसा यहां अनुमानके प्रकरण में लक्षण प्राप्त हो रहा है। क्योंकि साध्य के प्रति उन्मुख हो रहे और अन्यथानुपपत्तिरूप नियमसे वेष्टित हुये अर्थका मन इन्द्रियसे नियोजित साधन करके बोध होनेको अभिनित्रोधपना व्यवस्थित है ।
ननु मतिज्ञान सामान्यमभिनिबोधः प्रोक्तो न पुनः स्वार्थानुमानं तद्विशेष इति चेन्न, प्रकरण विशेष । च्छन्दान्तरसन्निधानादेव सामान्यशब्दस्य विशेषे प्रवृत्तिदर्शनात् गोशब्द