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तत्वार्थ लोकवार्तिके
संबंधं व्याप्तितोर्थानां विनिश्चित्य प्रवर्तते ।
येन तर्कः स संवादात् प्रमाणं तत्र गम्यते ॥ ८५ ॥
जिस ज्ञान करके अर्थोके संबंधको सम्पूर्ण देश, कालका उपसंहार करनेवाली व्याप्तिके स्वरूपसे विशेष निश्चय कर अनुमानकर्त्ता जीव प्रवृत्ति करता है, वह तर्कज्ञान उस संबंधग्रहण में सम्वाद हो जानेके कारण प्रमाण समझा जाता है ।
येन हि प्रत्ययेन प्रतिपत्ता साध्यसाधनार्थानां व्याप्त्या संबंध निश्चित्यानुमानाय प्रवर्तते स तर्कः संबंधे संवादात्प्रमाणमिति मन्यामहे ।
जिस तर्कज्ञान करके साध्य, साधनरूप अर्थोंके व्यापनेवाले रूपसे संबंधका निश्चय कर प्रतिपत्ता जीव अनुमानके लिये प्रवृत्ति करता है, वह तर्कज्ञान साध्यसाधनके संबंधको जानने में बाधारहित सम्वाद होने के कारण प्रमाण है । इस प्रकार हम स्याद्वादी मानते हैं। सम्वादयुक्त ज्ञान तो प्रमाण होना ही चाहिये ।
कुतः पुनरयं संबंधो वस्तु सन् सिद्धो यतस्तर्कस्य तत्र संवादात् प्रमाणत्वं कल्पितो हि संबंधस्तस्य विचारासहत्वादित्यत्रोच्यते ।
संबंधको नहीं माननेवाले बौद्ध पूछते हैं कि यह संबंध फिर वस्तुभूत हो रहा कैसे सिद्ध माना जाय ! जिससे कि उस संबंध के जाननेमें सम्बाद हो जानेसे तर्कज्ञानको प्रमाणता मान ली जाय । हम बौद्ध तो कहते हैं कि वह संबंध पदार्थ कल्पित ही है । हमारे उठाये हुये विचारोंको वह नहीं झेल सकता है । इस प्रकार यहां बौद्धोंके कहनेपर अब आचार्य अपना सिद्धान्त कहते हैं । संबंधो वस्तु सन्नर्थक्रियाकारित्वयोगतः ।
स्वष्टार्थतत्त्ववत्तत्र चिंता स्यादर्थभासिनी ॥ ८६ ॥
संबंध ( पक्ष ) वस्तुभूत होकर विद्यमान है ( साध्य ) । अर्थक्रियाको करनेवालेपनका
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योग होनेसे ( हेतु ) । जैसे कि अपने २ अभीष्टतत्त्व अर्थ वास्तविक हैं ( दृष्टान्त ) । उस संबंध में यथार्थपनका प्रकाश करानेवाली चिंता बुद्धि उपयोगिनी हो रही है। गौ न्यारा पदार्थ है । सांकल न्यारी है । किन्तु आंकडेमें डालकर गौके गलेमें बांधनेसे उस संबंधके ही द्वारा गौ स्वतंत्र विवरण नहीं कर पाती है । सिद्धालय में भी कार्मण वर्गणाऐं विद्यमान हैं। किन्तु संयोग मात्रसे कुछ फल नहीं होता है। योग, कषाययुक्त संसारी जीवोंके साथ कार्मणद्रव्यका समीचीन बंध हो जानेपर ही राग द्वेष, अज्ञान, आदि भाव उत्पन्न होते हैं । अकेला अकेला तन्तु शीतबाधाको दूर करना, गजको बांधना, कुसे पानी खेंचना, इन क्रियाओंको नहीं कर सकता है। हां, उन अनेकोंका संबंध उक्त क्रियाओं को सुलभतासे कर देता है । प्रकरणमें अनुमाताके लिये संबंधका ज्ञान अनुमिति फरनेमें उपयोगी है।
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